माणा गांव में विधि विधान से आयोजित हुआ सरस्वती पुष्कर कुंम्भकम् कार्यक्रम


भगवान बद्री विशाल के कपाट ब्रह्ममुहूर्त में सुबह ठीक 6 बजे वैदिक परम्परानुसार राजपरिवार के प्रतिनिधि व गढ़वाल के हकहकूकधारी ब्राह्मण एवम क्षत्रियों की उपस्थित में आम जन के दर्शनार्थ खोला गया। तत्पश्चात 10:30 बजे से 12:30 बजे अभिजीत मुहूर्त मे 12 वर्षो के उपरांत सरस्वती पुष्कर कुंभकम् का आयोजन हेतु ध्वज स्थापना का आयोजन माणा गाँव के समीप सरस्वती और अलकनंदा के तट पर स्थित केशव प्रयाग पर विधि-विधान के साथ किया गया ।
सरस्वती नदी के किनारे वेदव्यास द्वारा वेदों की रचना होने का संदर्भ आता है। भारत प्राचीन समय से सभ्यता एवम संस्कृति का केन्द्र बिन्दु रहा है I सरस्वती नदी के प्रवाह की खोज हेतु अनेक विद्वानों ने प्रयत्न किये, अनुसंधान केंद्र बने, सरकार ने भी टास्क फोर्स गठित की , इसरो के वैज्ञानिकों ने भी प्रवाह के चित्र लिए हैं I ‘सरस्वती अभियान’ की सफलता से वैदिक काल तक का इतिहास विश्व को मानना पड़ेगा I सरस्वती नदी पूर्व में आदिबद्री (चाँदपुरगढ़) में होने का उल्लेख मिलता है जो सदैव परवाहमान होकर आज भारत के प्रथम गांव माणा (बद्रीनाथ) के सन्निकट पर्वत के गर्भ से निकल कर आगे चलकर भूमिगत हो जाती है I
12 वर्षों के पश्चात सरस्वती पुष्कर कुम्भकंम कुंभ का आयोजन होता है, जिसमें दक्षिण के आचार्यों एवं उपासकों की विशेष सहभागिता होती है I
इस सरस्वती पुष्कर कुंभकम को सफल कर सरस्वती अभियान में कार्यशाला का आयोजान भी किया जायेगा जिसके आधार पर इसरो एवं अन्य अनुसन्धानकारी संगठनों के साथ मिलकर इस कार्य को परिणामकारी बनाने हेतु भू बैकुंठ धाम के कपाट उद्घाटन के पश्चात ध्वज स्थापना पूजन पारंपरिक विधि विधान से क्षेत्रीय पुरोहित, राजगुरु, दीक्षा गुरु, अन्य पुरोहितों, स्थानीय स्थापना के समय गढ़वाल के चार प्राचीन चिन्ह निशान इस पूजन में सम्मिलित रहे, जिसमें विष्णु ध्वज, गढ़वाल का प्राचीन ध्वज, टिहरी गढ़वाल का सैन्य ध्वज व मां तारा की उत्सव चिन्ह सम्मिलित थें। सरस्वती ध्वज की स्थापना हेतु पैय्यां की लकड़ी का प्रबंध श्री प्रकाश कुमार डिमरी (बड़वा लेखवार) बद्रीनाथ के पुजारी के बगीचे जो रविग्राम खौंण बद्रीनाथ फुलवारी से लाया गया। ध्वज का कलश पुराना दरबार ट्रस्ट द्वारा सरस्वती उत्सव मूर्ति स्थापित की गई। तत्पश्चात भगवान बद्रीनाथ के कपाट बंद होने तक इस पूरे वर्ष ग्रह नक्षत्र के अनुसार श्रद्धालु स्नान कर सकेंगे। वही माणा गाँव में टिहरी राजपरिवार के वंशज कुंवर भवानी प्रताप सिंह द्वारा समी गाँव के पंचों और सयाणों का पगड़ी बांध कर दस्तूर किया गया।
इस दौरान सभी हकहकूक धारी ब्राह्मण और राजपूत समाज, टिहरी राजपरिवार के वंशज ठाकुर कुंवर भवानी प्रताप सिंह , राजगुरु कृष्णानन्द नौटियाल , हरीश डिमरी जी, भाष्कर डिमरी ,ठाकुर नरेंद्र सिंह रौथाण, ठाकुर गौरव सिंह बर्तवाल, डाक्टर मानवेंन्द्र सिंह बर्त्वाल, महेन्द्र सिंह बर्त्वाल , उपेन्द्र सिंह बर्त्वाल,, सुरेश चन्द्र सुयाल, राजेंद्र भंडारी, देवी प्रसाद देवली, भुवन उनियाल धर्माचार्य प्रतिनिधि , गिरधर समन्वयक दक्षिण भारत आदि लो मौजूद रहे।