फॉरेस्ट फायर के लिए कितने तैयार है हम?



-भानु प्रकाश नेगी,चमोली
उत्तराखण्ड में वनाग्नि हर साल बड़ी चुनौती बनती जा रही है। हर साल वनाग्नि से होने वाले नुकसान का आंकलन सही तरीके से लगाना मुस्किल है, लेकिन हर साल वनाग्नि से होने वाले वन सम्पदा का करोड़ों रूपऐ का नुकसान हो रहा है। साथ ही वन्यजीवो व जनहानि का भी भारी नुकसान देखा गया है। उत्तराखण्ड देश व दुनियां में वनों की हरियाली,बर्फीले पहाड़,विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों,जैव विविधताओं के साथ साथ शांत वातावरण व शुद्ध आवोहवा के लिए जाना जाता है। वनाग्नि के कारण उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन गिलेश्यिरों के पिघलने का बढ़ा कारण बनता जा रहा है। बीते साल भयानक वनाग्नि के कारण लगभग दो हजार हेक्टेयर जंगलों के तबाह होने का अनुमान है। जबकि इस बार फरवरी के प्रथम सप्ताह से ही वनाग्नि की घटनाए देखने को मिल रही है,और शहरों का तापमान मार्च अप्रैल जैसा हो गया है।
पोस्ट विन्टर और विन्टर सीजन में वारिस निराशाजनक
उत्तराखण्ड मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पोस्ट विनटर सीजन में सिर्फ 36.07 प्रतिशत ही बारिश हुई है जबकि 54.4 बारिश होनी चाहिए थी। यानी कि पोस्ट विनटर सीजन अक्टूबर,नवंम्बर व दिसंबर में 33 प्रतिशत बारिश कम हुई है। वही विन्टर सीजन यानी कि जनवरी व फरवरी में अभी तक मात्र 5.5 प्रतिशत ही बारिश हो पाई है,जबकि कम से कम 42.2 प्रतिशत बारिश होने चाहिए थी। यानी कि जनवरी माह में 87 प्रतिशत बारिश कम देखने को मिली है। जो एक चिन्ता का विषय हो सकता है।
राज्य सरकार ने किया वनाग्नि रोकने के पुख्ता दावे
बीते साल हुई वनाग्नि की घटनाओं को देखते हुए इस बार राज्य सरकार ने सभी जनपदों में जिला प्रसाशन को वनाग्नि की रोकथाम के लिए पहले से ही तैयारियां करने के निर्देश जारी किय है। जिसके बाद जिला प्रशासन के द्वारा वन विभाग,पुलिस विभाग,ग्राम्य विभाग व अन्य विभागों के साथ साथ वन पंचायतों की बैठके आयोजित की गई। साथ ही राज्य स्तरीय टैªनिग भी कराई गई है। वन विभाग,पुलिस,व प्रशासन के द्वारा वनाग्नि की घटनाओं के लिए समय सीमा कम से कम करने की बात कही जा रही है। पुलिस विभाग के द्वारा फायर ब्रिगेड को एर्लट मोड़ पर रखा गया है। साथ ही जंगलों में आग लगाने वाले अराजक तत्वों को सख्त सजा का प्राविधान रखा गया है। वन विभाग का दावा है कि वह जन जागरूकता के लिए लगातार ग्रामीणों के साथ बैठकें आयोजित कर रहा है। साथ ही चमोली जनपद में वनाग्नि की जागरूकता के लिए वन देवी की डोली को प्रत्येक व्लॉक में घूमाया जा रहा है। वन देवी से ग्रामीण जंगलों को आग से बचाने की दुवाऐ मांग रहे है। वन विभाग के अनुसार पर्यावरण प्रेमियों,समाजसेवियों को भी इस कार्य में बड़ चड़कर भाग लेने के लिए आग्रह किया जा रहा है। मीडिया कर्मियों से वनाग्नि से बचाने के लिए जन जागरूकता की अपील की जा रही है।
क्या कहते है पर्यावरणविद्
पर्यावरण विद् व पर्यावरण प्रेमी हर साल वनाग्नि के कारण जल रहे जंगलों से काफी हैरान व परेशान है। पर्यावरण प्रेमी वनाग्नि के लिए सीधे तौर पर नीति नियंताओं को दोषी ठहरा रहे है। प्रसि़द्ध पर्यावरण विद् पद्म श्री कल्याण सिंह रावत मैती का कहना है कि, इस बार भी गर्मी बहुत अधिक पड़ने वाली है। क्योंकि सर्दी के मौसम में बारिश ना के बराबर हुई है। उचाई वाले इलाकों में बर्फबारी बहुत कम मात्रा में हो पाई है। इसका असर अभी से मैदानी भागों में देखने को मिलने लगा है। शहरों में अभी से मार्च और अप्रैल वाली गर्मी दिन में देखने को मिल रही है। वन विभाग के पास आग बुझाने के सीमित संसाधन है। जन सहभागिता के बिना आग नहीं बुझाई जा सकती है। इसमें ग्रामीणों की महत्वपूर्ण भूमिका है। चीड़ के पेड़ों का जब तक प्रबंधन नहीं होगा तब तक पहाड़ी क्षेंत्रों में आग लगने से कोई नहीं रोक सकता है। क्यांेकि पहाड़ों 1000 से अधिक उॅचाई वाले इलाको में 95 प्रतिशत चीड़ के जंगल है। इस चीड़ पर लगने वाली आग कई मीटर उपर तक जाती है। चीड़ की पत्तियां लगातार झड़ती रहती है। जिससे बार बार आग लगने का खतरा बना रहता है। चीड़ की पत्तियां जलने से काबर्न डाई आक्साईड गैस निकलती है,जो हिमालय के गिलेशियरों को तेजी से पिघला रही है। गिलेशियर पिघलने से हिमालयी क्षेत्र में कई बड़ी झीले बन चुकी है। यह लोकल वर्मिग की वजह से हुआ है। उत्तराखण्ड भूकम्प की दृष्टि से अति संवेदनशील है जिसमें 7 से 8 रियेक्टर का भूकम्प आने की संभावनाऐ बनी रहती है। तेज भूकंम्प से झीले टूटने पर भारी तबाही हो सकती है। फायर सीजन पर जंगलों के जलने से पर्यटन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। चारधाम यात्रा ग्रीष्मकालीन समय में आयोजित होने से यहां धुऐं के कारण आस-पास कुछ भी नहीं दिखाई देता है। जिससे पर्यटक काफी मायूस हो जाता है। जंगलों के जलने से यहां के वन्यजीव व बहुमुल्य जैव विविधिता विलुप्ति की कगार पर पंहुच गई है। इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक पार्टी पर्यावरण सुरक्षा को कभी भी मुद्दा नहीं बनती है।
-पद्म श्री कल्याण सिंह रावत मैती



पयावरर्ण प्रेमी व पेड़ वाले गुरूजी के नाम से प्रसिद्ध धनसिंह घरिया का कहना कि वनाग्नि पूर्ण रूप प्रायोजित होती है। 99 प्रतिशत वनाग्नि मानव जनित होती है। जिससे रोकना संभव है। इसके लिए वृहद स्तर पर जन जागरूकता के साथ-साथ अपराधियों के लिए कठोर सजा व भारी जुर्माना लगाने की आवश्यकता है। वनाग्नि रोकने के लिए जन-जन की सहभागिता नितांत आवश्यक है। सिर्फ वन विभाग के भरोसे वनाग्नि रोकना संभव नहीं है। जब तक प्रत्येक व्यक्ति इसके लिए सचेत नहीं होगा और वनाग्नि को रोकना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा तब तक वनाग्नि नही रूक सकती है।
धनसिंह घरिया,पेड़ वाले गुरूजी,पर्यावरण प्रेमी।
प्रसाशन भी अलर्ट मोड पर
चमोली जनपद वनाग्नि के लिए सबसे संवेदनशील जनपदों में से एक है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग,बद्रीनाथ वन प्रभाग,अलकनंदा वन प्रभाग के साथ साथ पुलिस व ग्राम्य विकास,पीडब्लुडी,जल संस्थान,समेत सभी विभागों को संयुक्त रूप वनाग्नि की रोकथाम की जिम्मेदारी जिला प्रसाशन द्वारा दी गई है।
जिलाधिकारी चमोली डॉ संदीप तिवारी का कहना है इस बार संयुक्त रूप वनाग्नि की घटनाओं को राकने के तीनोेें विभागों को निर्देश दिए गये है। जिसमें वन पंचायतों व ग्रामीणों के बैठके आयोजित कर वनाग्नि की रोकथाम के लिए जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। जिससे वनाग्नि की घटनाये कम से कम हो।
डॉ संदीप तिवारी जिलाधिकारी चमोली
चमोली जनपद में बद्रीनाथ वन प्रभाग,केदारनाथ वन प्रभाग के साथ साथ नंदादेवी वन प्रभाग वनाग्नि की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। यहां अतियंत महत्वपूर्ण जैव विविधता के साथ साथ हिम तेन्दुआ,काकड़,हिरन,बाघ,तेन्दुआ,भालु जैसे जानवरों की संख्या अधिक है। वही उप वन संरक्षक केदानाथ वन्य जीव प्रभाग तरूण एस. का कहना है कि जंगलो में लगने वाली आग को लेकर हम सभी गांवों में जागरूकता बैठकें कर रहे है। समर फायर के लिए हम सभी कमियां को दूर कर रहे है।
-तरूण एस., उप वन संरक्षक केदानाथ वन्य जीव प्रभाग।
फायर सीजन में अक्सर असामाजिक तत्व जंगलों को आग के हवाले कर देते है। जिससे अरबों की वन सम्ंपदा नष्ट हो जाती है। इस बार जिला प्रसाशन के द्वारा पुलिस प्रसाशन को वनाग्नि रोकथाम में सामिल किया गया है। वही पुलिस अधिक्षक चमोली का कहना है कि फारेस्ट फायर के लिए हमारी पहले से ही तैयारियां है। पुलिस लाइन में राज्य स्तरीय ट्रेनिंग कार्यक्रम हो चुका है। फायर ब्रिगेट की गाड़ियों को अलर्ट मोड पर रखा गया है। और वनों में आग लगाने वाले अराजक तत्वों पर सख्त कार्यवाही की जायेगी।
सर्वेश पंवार पुलिस अधिक्षक चमोली
वनाग्नि को रोकने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वन पंचायतों की होती है। पोखरी व्लॉक की सरपंचों की अध्यक्षा माला कण्डारी का कहना है कि बाहर से आने वाले लोगों पर विशेष निगरानी रखी जाए। साथ ही लोगों से आड़ा फुकान की अपील की जा रही है। अभी तक 9 वन पंचायतों में वनाग्नि की रोकथाम के लिए उपकरण भेज पाए है। बाकी वन पंचायतों में भी जल्द वनाग्नि के उपकरण पंहुचा दिए जाऐगे।
माला कण्डारी,सरपंच व्लॉक अध्यक्ष पोखरी
वनाग्नि की घटनाऐं कम से कम हो इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए,वनाग्नि को बिना जन सहभागिता,जन जागरूकता,अत्याधिक आधुनिक उपकरणो व चीड़ के पेड़ो के उचित प्रबंधन के बिना रोकना संभव नहीं है। जंगलों को आग से बचाने के लिए प्रत्येक नागरिक को तन मन धन से आगे आना होगा जिससे मानव जीवन को खतरे में जाने से बचाया जा सके।
वनाग्नि रोकने के लिए वन विभाग को सरपंचों व ग्रामीण स्तर पर महिलाओं व ग्रामीणों को ट्रेंनिग के साथ साथ अत्याधुनिक अग्निशमन हथियार देने की आवश्यकता है। जिससे वन विभाग की टीम के पंहुचने से पहले आस पास के क्षेत्रांे में लगी आग को जल्दी से जल्दी बूझाया जा सकें। वनाग्नि को रोकने में सबसे बड़ी भूमिका ग्रामीण व वन पंचायत सरपंचो की हो सकती है। यदि वन विभाग इनके साथ आपसी तालमेल बिठाये।
वनाग्नि के दुस्प्रभाव
वनाग्नि के कारण हर साल होने वाले करोड़ों रूपये की आर्थिक हानि के साथ साथ हजारों पशु पक्षियों व जानवरों के घरोंदे उजड़ जाते है। साथ ही कई जंगली जानवरों व जीव जन्तुओं की आग में जलकर दर्दनाक मौत हो जाती है। वनों की आग के कारण काबर्न उत्सर्जन से हिमालय के गिलेशियर तेजी से पिघलने लगे है। प्रत्येक साल प्राकृतिक जल के स्रोत सुखते जा रहे है। जिससे जंगली जानवरों का रूख आवादी क्षेत्र की ओर हो गया है। आवादी वाले क्षेत्रों में जंगली जानवर किसानों की फसलों को भारी नुकसान पंहुचा रहे है। साथ ही आदमखोर बनने से इनसानों की भी जान ले रहे है। वनाग्नि के कारण जीव जगत की खाद्य श्रृखला विकृत हो रही हैं जिससे सम्पूर्ण जीव जगत खतरे में पड़ने लगा है। समय रहते वनों को आग से नहीं बचाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इन्सान का अस्थित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।
