December 27, 2024

खास खबर:सर्दियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, ‘गायब’ हो रही वसंत ऋतु

NEW YORK, U.S. - FEBRUARY 28: Snowman is seen during a foggy day after its biggest snowfall of this season the late in New York, United States on February 28, 2023. (Photo by Selcuk Acar/Anadolu Agency via Getty Images)

 

-जनवरी के बाद फरवरी में तेजी से तापमान बढ़ने से वसंत ऋतु कम अवधि के लिए होती है अनुभव

-क्लाइमेट कंट्रोल के गहन अध्ययन में देश के 34 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में मौसम पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव सामने आए

नई दिल्लीः विश्व में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। जलवायु में बदलाव के दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं और अब आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं। एक ताजा रिपोर्ट में पर्यावरण का अध्ययन करने वाली संस्था क्लाइमेट सेंट्रल ने विशेषज्ञों और आंकड़ों के हवाले कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में ऋतुओं में बदलाव देखा जा रहा है। सर्दी के मौसम पर यह विशेष रूप से दिख रहा है। कहीं सर्दी में तापमान बढ़ रहा है तो कहीं कम हो रहा है। कई लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि सर्दी के बाद आने वाली  वसंत ऋतु मानों ‘गायब’ सी हो रही है।

 

जलवायु परिवर्तन के लिहाज से देखें तो वर्ष 1850 के बाद से वैश्विक औसत तापमान में 1.3 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हुई है और इस आंकड़े ने वर्ष 2023 में को एक नया ही कीर्तिमान बनाया है। तापमान में इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जलाने से वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड का बढ़ता स्तर है। क्लाइमेट सेंट्रल की इस रिपोर्ट का उद्देश्य भारत को जलवायु परिवर्तन के वैश्विक रुझानों के संदर्भ में परखना और यहां आ रहे परिवर्तनों का अध्ययन करना है। इस रिपोर्ट में ध्यान सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) पर केंद्रित रखा गया है।

रिपोर्ट में भारत के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मासिक औसत तापमान की गणना की गई है। साथ ही, विशेषज्ञों ने वर्ष 1970 से अब तक वृहद अवधि पर भी ध्यान केंद्रित किया है क्योंकि यही वह अवधि है जब विश्व में सबसे अधिक ग्लोबल वार्मिंग हुई है। लगातार दर्ज किया जा रहा डाटा भी यही कहता है। रिपोर्ट में प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के लिए, प्रत्येक माह में तापमान में वृद्धि के साथ प्रत्येक तीन महीने की मौसम अवधि के दौरान ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। धरती के गर्म होने की दर वर्ष 1970 के बाद से औसत तापमान में परिवर्तन के रूप में व्यक्त की जाती है।

 

कई भारतीयों का कहना है कि वसंत का मौसम जैसे गायब सा हो गया है। तापमान अब काफी जल्दी सर्दी से गर्मी जैसी परिस्थितियों में बदल जाता है। इस रिपोर्ट में क्लाइमेट सेंट्रल के विशेषज्ञों ने मौसम के बदलाव के माध्यम के वसंत के मौसम को लेकर भारतीयों की इस धारणा का अध्ययन करने का प्रयास किया है और यह भी जानने का प्रयास किया है कि देश में कहां पर यह धारणा सबसे अधिक लागू हो सकती है।

गर्म हो रही है सर्दीः

अध्ययन में शामिल देश के प्रत्येक क्षेत्र में सर्दी के दौरान तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 1970 के बाद से मणिपुर में तापमान में सबसे अधिक 2.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है जबकि देश की राजथधानी दिल्ली में सबसे कम यानी 0.2 डिग्री सेल्सियस की ही बढ़ोतरी सर्दी के दौरान तापमान में हुई है। इस अध्ययन में देश के जिन 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है, उनमें से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सर्दी सबसे तेजी से गर्म होने वाला मौसम पाया गया है। यहां यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि पतझड़ (आटम) के बाद सबसे अधिक स्थानों में तापमान बढ़ने के मामले में सर्दी के मौसम का देश में दूसरा स्थान है। पतझड़ देश के 13 क्षेत्रों में सबसे तेजी से गर्म होने वाला मौसम था।

 

चित्र -1 सर्दी, वंसत, गर्मी, पतझड़

चित्र -1 भारत में मौसमी तापमान वृद्धि के पैटर्न। तापमान में वृद्धि की दर वर्ष 1970 से दर्ज की गई है।

सर्दी में पैटर्न भी बदल रहाः

देश में सर्दी के मौसम में तापमान में बदलाव के पैटर्न में भी उल्लेखनीय अंतर महसूस किए गए हैं। रिपोर्ट कहती है कि देश के दक्षिणी भाग में दिसंबर और जनवरी में तापमान वृद्धि अधिक पाई गई है (चित्र 2)। आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर और जनवरी माह में क्रमशः सिक्किम (2.4 डिग्री सेल्सियस) और मणिपुर (2.1 डिग्री सेल्सियस) में तापमान में सबसे अधिक परिवर्तन हुआ। देश के उत्तरी भाग में दिसंबर और जनवरी के दौरान तापमान में कमजोर वृद्धि देखी गई या यूं कहें कि इस क्षेत्र में सर्दी को और ठंडा होते देखा गया। इस अवधि के दौरान दिल्ली में सबसे कम दर दर्ज की गई जो दिसंबर में -0.2 डिग्री सेल्सियस और जनवरी में -0.8 डिग्री सेल्सियस रही। अन्य राज्यों की बात करें तो लद्दाख में दिसंबर माह में 0.1 डिग्री सेल्सियस और उत्तर प्रदेश में जनवरी में -0.8 डिग्री सेल्सियस ही तापमान में वृद्धि की दर दर्ज की गई।

 

जनवरी और फरवरी के बीच सर्दी में तापमान में बदलाव का पैटर्न नाटकीय रूप से बदल जाता है। रिपोर्ट के अनुसार फरवरी में सभी क्षेत्रों में तापमान बढ़ना देखा गया, लेकिन इससे पहले के महीनों में ठंडा रहने या कम गर्म रहने वाले कई क्षेत्रों में विशेष रूप से तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। जम्मू और कश्मीर में तापमान में वृद्धि के कारण अधिक गर्म होना (3.1 डिग्री सेल्सियस) रहा जबकि तेलंगाना में 0.4 डिग्री सेल्सियस के साथ सबसे कम तापमान वृद्धि दर्ज की गई।

 

चित्र 2-दिसंबर, जनवरी, फरवरी

 

चित्र 2- सर्दी के मौसम में भारत में तापमान वृद्धि के ट्रेंड। तापमान में वृद्धि की दर वर्ष 1970 से दर्ज की गई है।

सर्दी में अब तापमान में अचानक परिवर्तन बाद में होते हैं:

उत्तरी भारत में जनवरी के ट्रेंड (कम या हल्की तापमान वृद्धि) और फरवरी (तेजी से तापमान वृद्धि) के बीच जो भिन्नता है, उसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में अब सर्दी जैसे ठंडे तापमान से सीधे तौर पर गर्म परिस्थितियों वाले अचानक बदलाव की आशंका प्रबल हो गई है जैसा आमतौर पर मार्च के महीने में होता रहा है।

मौसम में इस बदलाव को दिखाने के लिए, हमने जनवरी और फरवरी में तापमान में वृद्धि की दर के बीच के अंतर को लिया (चित्र-3)। सबसे बड़ी तापमान वृद्धि राजस्थान में हुई जहां फरवरी की गर्मी जनवरी से 2.6 डिग्री अधिक रही (चित्र-4)। कुल नौ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनवरी-फरवरी के तापमान के बीच 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक का अंतर देखा गया। ये राज्य हैं राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, पंजाब, जम्मू और कश्मीर और उत्तराखंड। यह तथ्य उन रिपोर्ट को मजबूती प्रदान करता है जिनमें कहा गया कि ऐसा लगता है कि भारत के कई हिस्सों में वसंत का मौसम गायब सा हो गया है।

 

चित्र-3: जनवरी-फरवरी के बीच तापमान वृद्धि में अंतर

चित्र-3: जनवरी और फरवरी के बीच तापमान वृद्धि की दरों में अंतर। यह आंकड़ा वर्ष 1970 से अब तक फरवरी की तापमान वृद्धि में जनवरी की तापमान वृद्धि को घटाकर प्राप्त किया गया है।

 

 

चित्र-4: राजस्थान में जनवरी-फरवरी में तापमान बदलाव

 

चित्र-4: राजस्थान में जनवरी में तापमान में बदलाव (नीले रंग में, माइनस 0.2 डिग्री सेल्सियस, वर्ष 1970 से) और फरवरी (नारंगी रंग में 2.3 डिग्री सेल्सियस वर्ष 1970 से)

अध्ययन की विधियां:

मासिक और मौसमी औसत तापमान की गणना

अध्ययन में 1 जनवरी, 1970 से 31 दिसंबर, 2023 तक की अवधि के लिए ERA5 से दैनिक औसत तापमान निकाला गया है। ERA5 मौसम स्टेशनों, गुब्बारों और उपग्रहों से मौसम संबंधी आंकड़ों के मिलान के साथ डाटा उपलब्ध कराने के लिए कंप्यूटर माडल के उपयोग की वैज्ञानिक विधि है। अध्ययन में क्लाइमेट सेंट्रल ने प्रत्येक प्रत्येक माह के आंकड़ों के लिए 0.25 डिग्री गुणा 0.25 डिग्री ग्रिड सेल के आधार पर औसत निकाला। फिर इसके आधार पर देश के 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में औसत प्राप्त किया गया। कम क्षेत्रफल के कारण चंडीगढ़ और लक्षद्वीप को इस अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है। मासिक तापमान औसतों को मौसम संबंधी औसत में जोड़ा गया। इस अध्ययन में सर्दी (दिसंबर-फरवरी), वसंत ( मार्च-मई), ग्रीष्म (जून-अगस्त) और शरद (सितंबर-नवंबर) को रखा गया है।

मासिक और मौसमी ट्रेंड की गणना

अध्ययन में प्रत्येक क्षेत्र के लिए प्रत्येक माह और मौसम के ट्रेंड प्राप्त करने की विधि में एकरूपता के लिए लीनियर रिग्रेशन (रैखिक प्रगमन) का उपयोग किया गया। ट्रेंड संबंधी तथ्य-डाटा बताता है कि जलवायु कैसे बदल रही है। यह किसी वर्ष में संभावित तापमान का सबसे अच्छा अनुमान हैं। वास्तविक तापमान दीर्घकालिक ट्रेंड और उस वर्ष के मौसम में बदलाव का संयोजन होता है।

ट्रेंड लाइन तापमान में वृद्धि की दर (डिग्री सेल्सियस प्रति वर्ष) को दर्शाती है। वर्ष 1970 के बाद से तापमान में हो रहे परिवर्तन का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए इन दरों को 53 से गुणा किया गया। ध्यान दें कि यह अध्ययन के आरंभ और समाप्त होने वाले वर्षों के बीच तापमान में अंतर नहीं है। यह लीनियर रिग्रेशन (रैखिक प्रगमन) विधि द्वारा प्राप्त दीर्घकालिक औसत परिस्थितियों में परिवर्तन है।

जलवायु परिवर्तनः

जलवायु परिवर्तन हमारी धरती के तापमान और मौसम को प्रभावित कर रहा है। यह वायुमंडल में प्रदूषण के कारण होता है। जलवायु वैज्ञानिक पृथ्वी के तापमान में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं और यह पता लगता हैं कि कैसे जलवायु परिवर्तन लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।

दैनिक तापमान पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

वैश्विक तापमान में हो रहे बदलाव को समझने के लिए वैज्ञानिक जटिल गणनाओं का उपयोग करते हैं। ये गणनाएं यह निर्धारित करने में मदद करती हैं कि दैनिक तापमान कितना बदल गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानव गतिविधियों, जैसे कोयला और तेल जलाने से वायुमंडल प्रदूषित होता है। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। भारत सहित पूरे विश्व में सभी मौसमों में गर्म स्थिति देखी जा रही है।

एक्सपर्ट की बात

डा. एंड्रयू परशिंग, वाइस प्रेसीडेंट-साइंस, क्लाइमेट सेंट्रल

‘मध्य और उत्तर भारतीय राज्यों में जनवरी में तापमान में कमी के बाद फऱवरी में तेजी से बढ़ता तापमान सर्दी से वसंत की तरह की स्थिति की और बढ़ने के प्रभाव की ओर स्पष्ट संकेत करता है। कोयला और तेल का ईंधन के तौर पर प्रयोग करके लोगों ने भारत में हर मौसम में धरती के तापमान को बढ़ा दिया है।

 

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