उत्तराखंड में अनियमित वर्षा, जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाया रात्रि का तापमान
उत्तराखंड में 2024 मानसून सीजन में लगभग सामान्य बारिश ही रही है, लेकिन इसका पैटर्न अनियमित रहा है। दीर्घ अवधि के औसत की बात करें तो उत्तराखंड में 110 प्रतिशत बारिश हुई है। 1 जून से 30 सितंबर की अवधि में यहां 1273.4 मिमी पानी बरसा जबकि सामान्य तौर पर 1162.7 मिमी बारिश इस पहाड़ी प्रदेश में होती है।
भारतीय मौसम विज्ञान के डाटा के अनुसार विस्तार से बात करें तो राज्य के 13 जिलों में से नौ में इस मानसून सीजन सामान्य बारिश ही रही जबकि दो में काफी अधिक वर्षा रही। एक जिले में अधिक बारिश हुई जबकि एक शेष जिले में बारिश की कमी रही। बागेश्वर में इस सीजन में सबसे अधिक पानी बरसा जिसके बाद चमोली का नंबर आता है। पौड़ी गढ़वाल में इस मानसून सीजन में बारिश में सबसे अधिक कमी दर्ज की गई।
उत्तराखंड के जिलो में इस तरह हुई बारिश
डाटा स्रोतः आईएमडी
हालिया बरसों की तरह 2024 का मानसून सीजन भी चरम मौसमी घटनाओं वाला रहा। इन घटनाओं में सबसे अधिक संख्या भारी से अत्यधिक भारी बारिश वाली घटनाओं की रही।
डाटा स्रोतः आईएमडी
जलवायु परिवर्तन की भूमिका
हाल के बरसों में मानसून ने अपने स्वभाव में बदलाव की प्रवृत्ति दर्शाई है। वैज्ञानिक मानसून के बदलते पैटर्न की बढ़ती प्रवृत्ति जैसी चरम मौसमी घटनाओं को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़कर देखते हैं।
एक समय जिस ग्रीष्मकालीन मानसून का पूर्वानुमान लगाना आसान था, अब जलवायु परिवर्तन के कारण वह बेहद अनियमित और अविश्वसनीय व्यवहार वाला होता जा रहा है। एक ताजा अध्ययन बताता है कि भारत में अब मानसून अवधि यानी जून से सितंबर (जेजेएएस) तक गर्मी का मौसम महसूस किया जाने लगा है। पैटर्न में इस तरह के बदलाव अधिक तीव्र, अनियनित और लगातार वर्षा वाले सीजन का कारण बन रहे हैं और यह बदलाव अधिक शुष्क और आर्द वर्ष को जन्म दे रहा है। करीब 70 प्रतिशत जिले निरंतर और अनियमित बारिश का सामना करते हैं। जेजेएएस के दौरान अधिक हीटवेव का सामना करने वाले जिलों में भी अत्यधिक बारिश की घटनाओं की संख्या बढ़ी है।
पारंपरिक तौर पर मानसून गतिविधियों को धरती और समुद्री की सतह के बीच तापमान में अंतर से जोड़ा जाता है जिसके कारण हवा का रिवर्स ट्रेंड आरंभ होता है। इसका कारण समुद्री सतह की तुलना में धरती पर अधिक तापमान का होना कहा जाता है। हालांकि समय बीतने के साथ तापमान में लगातार वृद्धि ने बीते कुछ बरसों में मानसून पैटर्न को बदल दिया है। बीते एक दशक में हर साल मानसून में ये बदलाव देखे जा रहे हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान के पूर्व महानिदेशक डा. के.जे. रमेश कहते हैं, ‘बीते पांच-छह साल से उत्तर की ओर यात्रा करने के ट्रेंड के साथ मौसम प्रणाली मध्य भारत से गुजरती रही है।बारिश के पैटर्न में बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण तो है ही, साथ में इसके पीछे अल नीनो, इंडियन ओसन डायपोल और मैडेन जूलियन आसिलेशन भी कारण हैं। अत्यधिक तीव्र और कम अवधि की बारिश जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही है। बैक टू बैक सिस्टम के कारण मानसून की अवधि बढ़ी है। ’
यूके की यूनिवर्सिटी आफ रीडिंग के नेशनल सेंटर फार एटमास्फेरिक साइंस में रिसर्च साइंटिस्ट डा. अक्षय देवरस कहते हैं, ‘जलवायु परिवर्तन के साथ संबंध के लिए सामान्य शर्त यह है कि जब बारिश के लिए अनुकूल स्थितियां हों तो पहले के वर्षों की तुलना में अत्यधिक वर्षा की संभावना बढ़ जाती है। जैसे जैसे धरती गर्म होगी, मानसून में उतना ही बदलाव होगा। कई जिलों में बारिश के पैटर्न में भारी अंतर देखा गया है।’
क्लाईमेट ट्रेंड्स की संस्थापक और निदेशक आरती खोसला का इस बारे में कहना है, ‘मानसून की गतिविधियों को परखने के साथ हमें देश में स्थानीय स्तर पर होने वाली बारिश के वितरण की भी निगरानी करनी चाहिए। चरम मौसमी घटनाओं के रूप में यह स्थितियां सामने आई हैं। चाहे वह 2023 का सूखे वाला साल हो या 2024 जब सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है, औसम तापमान के कारण चरम मौमसी घटनाओं की संख्या में निरंतर वृद्धि देखी गई है। अब हमें देश की विविधता भरी भौगोलिक स्थितियों को जलवायु के प्रभाव से सुरक्षित रखने के लिए एक समग्र अनुकूलन रणनीति बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो जीवन बचाने के साथ रोजगार और इकोसिस्टम के लिए भी कवच बने।’
मानसून में बदलाव के स्थानीय कारण
शहरीकरण में हो रहे तेज बदलाव, सिंचाई के तौर-तरीके और भूउपयोग के कारण भारत में क्षेत्रीय बारिश के पैटर्न में बदलाव हुआ है। इन स्थानीय कारणों से ही औसत प्रतिदिन बारिश के आंकड़े में बढ़ोतरी हुई है जिससे मानसून में बदलाव पर इन कारणों का प्रभाव स्पष्ट होता है।
वनक्षेत्र में कमीः वनक्षेत्र में कमी होने के कारण मानसून की बारिश पर प्रभाव पड़ा है क्योंकि वाष्पीकरण की प्रक्रिया में बदलाव हुआ है और सूखे की स्थिथियां तीव्र हुई हैं। माडल आधारित अध्ययन बताते हैं कि वैश्विक मानसून क्षेत्रों में वनकटाव के कारण भारत में बारिश में 18 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। 1980 और 2000 के दशकों के बीच तुलना से पता चलता है कि सवाना वुडक्षेत्र यानी छतरी जैसा आकार बनाने वाला झाड़ियों-पौधों से घिरा क्षेत्र मध्य, प्रायद्वीप और उत्तर पूर्व भारत का प्रमुख लैंड यूज लैंड कवर यानी एलयूएलसी था। हालांकि 2005 तक इन क्षेत्रों में कृषि के लिए प्रयोग किया जाने लगा क्योंकि विकास और कृषि का दायरा बढ़ रहा था। इस कारण मानसूनी बारिश पर काफी प्रभाव पड़ा। उत्तर पूर्व भारत, गंगा बेसिन और मध्य भारत के क्षेत्रों में भूउपयोग बदलने के कारण बारिश में कमी देखी गई है। मानसून के दौरान मीन और एक्सट्रीम नियर सरफेस डेली टेंपरेचर में 1-1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से बारिश पर दुष्प्रभाव और अधिक हो गया।
सिंचाई के तौर-तरीकेः भारत में मानसूनी गतिविधियों पर सिंचाई के तौर-तरीकों का बहुत प्रभाव पड़ता है। भारत के विशाल नदी क्षेत्र कृषि वाले इलाकों और घनी आबादी के लिए एक सपोर्ट सिस्टम का काम करते हैं और यहां पर कृषि बारिश पर अत्यधिक निर्भर होती है। हालांकि तेजी से बढ़ी जनसंख्या और भूजल स्तर में कमी व भूउपयोग में बदलाव के कारण संवेदनशीलता बढ़ी है। क्षेत्रीय माडल बताते हैं कि सिंचाई विशेषकर धान की फसल में अपनाए गए तरीको के कारण उत्तर भारत में कृषि भारतीय मानसून सीजन की बारिश में अहम भूमिका निभाती है। अव्यवस्थित सिंचाई सुविधाओं को मानसून में देर से होने वाली क्षेत्रीय बारिश के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
शहरीकरणः भारत में बीते तीन दशक में शहरीकरण की अभूतपूर्व गति ने बारिश की गतिविधियों को प्रभावित किया है। शहरी इलाके अपेक्षाकृत गर्म माने जाते हैं क्योंकि वहां अर्बन हीट आईलैंट्स इफेक्ट होता है जिसके कारण इवैपोट्रांसपिरेशन कम होता है और हीट स्ट्रेस में वृद्धि होती है। इस कारण जलवायु अनुकूलन रणनीतियों, हीट स्ट्रेस से बचने और शहरी क्षेत्र सूक्ष्म स्तर पर जलवायु की समझ विकसित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
रात्रि में तापमान में वृद्धि
सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश के बावजूद देश में लगाता रात्रि के तापमान में वृद्धि देखी जा रही है। 2024 में उत्तरपश्चिम भारत में 1901 के बाद से सर्वाधिक रात्रि तापमान रिकार्ड किए गए हैं। मानसून के महीने जून में सबसे रिकार्ड हीटवेव दिन रहे और पश्चिमी राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा-चंडीगढ़-दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल के गंगा किनारे वाले क्षेत्र, पूर्वी मध्य प्रदेश, ओजिशा आदि में 10-18 हीटवेव दिन रहे।
स्रोतः आईएमडी
क्लाईमेट ट्रेंड्स
क्लाईमेट ट्रेंड्स पर्यावरण के मुद्दे, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास पर ध्यान केंद्रित कराने के लिए रिसर्च आधारित सलाहकार और क्षमता विकास की दिशा में काम करने वाली पहल है।