रडुवा गांव के नन्दा कुण्ड का ऐतिहासिक महत्वःडॉ. योगम्बर सिंह वर्त्वाल


जनपद चमोली के विकासखण्ड-पोखरी की खदेड़ पट्टी में 30 जूला खदेड़ द्वारा क्षेत्र के रमणीय स्थल नन्दा कुण्ड में देवी भागवत कथा एवं शिवपुराण का एक सप्ताह कथा वाचन हुआ। कथा वाचन में कीर्तन आरती एवं यज्ञ हवन कार्यक्रम बड़े हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ। एक प्राचीन परम्परा का निर्वाहन बड़े हर्षोल्लास पूर्ण ढंग से किया गया।
गढ़वाल में शंकराचार्य के पदार्पण के पश्चात् 9वें शताब्दी में धार मालवा से राजा कनकपाल आये और बद्रीनाथ की यात्रा करने के बाद चाँदपुर गढ़ी में राजा भानुप्रताप के जामाता बन गये। उसी धार मालवा से 50 साल बाद उसी वंश के जगद देव पंवार भी उत्तराखण्ड में नीलगिरी पर्वत की ढूंढ में आये। तो राजा भानु प्रताप ने नीलगिरी पर्वत की तलहटी वर्तगढ़ (चाँदनी थात) में उन्हें बसने की राय दी। गढ़वाल जाते समय ऋषिकेश के पास जगददेव को कुलदेवी ने रास्ता बताया और वो कुल देवी की कृपा से वहाँ उनकी वंश वृद्धि हुई। उन्होंने अपने संकल्प को पूरा किया, देवी की आराधना की और खुशी से शीश अर्पित कर दिया।
वर्तगढ़ का यह स्थान वर्तमान में ग्राम रडुवा में पड़ता है। कालांतर में तीन ग्राम राजस्व ग्रामसभा रडुवा की सीमा से मिल गये। इस सीमा में चार वैदिक हवन कुण्ड, दो तांबे के खाने व 12 प्राकृतिक जल स्रोत हैं। नंदा कुण्ड क्षेत्र सुन्दर उपजाऊ रमणिक भूमि है। जहां से तुंगनाथ शिखर, ओणचीर गढ़, कालिंकाधार परवर्ती गढ़ और दशोलीगढ़ तक नजर पढ़ती है।
गढ़वाल राज्य में 14वीं शताब्दी के बाद ऐसा दौर आया कि तिब्बत के हूण लोग गढ़वाल के नागपुर, पैण्डखण्डा, दशोली व उत्तरकाशी जिले के टकनौर क्षेत्र में लूटपाट करने आते थे। वर्तगढ़ के वीर लोगों ने इन हूणों को खदेड़ा। जिससे इस पट्टी का नाम खदेड़ पड़ा। 16वीं शताब्दी में राजा गढ़वाल की सेना केे भीम सिंह बर्त्वाल व उदय सिंह बर्त्वाल जो इसी रडुवा गांव के थे सेनापति बनकर तिब्बत गये। हूणों को थोलिंग मठ व दापाघाट से वापिस आगे कर दिया। एक संधि पत्र भी बना जिसमें हूण लोग युद्ध नहीं करेंगे की शर्त थी और राजा गढ़वाल को प्रतिवर्ष सवा शेर स्वर्ण चूर्ण एक चौंरगाय की पूंछ व दो मेंड़े भेंट में देते थे। यह दौर राजा महिपत शाह का था। सन् 1805 तक यह भेंट राजा को आती थी। थौलिंग मठ से प्रतिवर्ष बद्रीनाथ जी को भेंट व बद्रीनाथ से प्रसाद भी भेजा जाता था। इस दौर में वीर बर्त्वाल सेना पति जब तिब्बत से वापस आये तो तिब्बत से घोड़े व बकरियां भी लाये। उनके साथ कैलाश शिखरों से नंदा देवी भी आयी तो रडुवा के बर्त्वाल सेनापत्तियों ने नंदा देवी के कुण्ड के पास स्थापित कर दिया। वहीं पर एक विशाल द्यूका भी था। जो तुंगनाथ जी का प्रतीक माना जाता है। तब से इस जगह का नाम नंदाकुण्ड पड़ गया। पहले जब कभी सूखा पड़ता था, बारिश नहीं होती थी तो खदेड़ के लोग ढोल नगाड़े लेकर नंदा कुण्ड में जाते थे और बारिश की प्रार्थना करते थे। प्रार्थना के बाद ऐसी बारिश होती थी कि छोटे गदेरे भी बेगवती नदी का रूप धारण कर लेते थे। नंदा देवी जनता की मांग पूरी कर देती है। फिर 50-50 साल के अंतराल पर स्थानीय लोग भागवत कथा व यज्ञ हवन का आयोजन करते थे। वर्ष 2002 में रडुवा खदेड़ के लोगों ने नंदा देवी यज्ञ हवन एवं भगवत कथा का आयोजन किया तब से यह निरन्तर किया जा रहा है। अब इस वर्ष 24 मई से 01 जून 2023 तक यह चौथा भागवत कथा का आयोजन हुआ है। सुख-शांति व समृद्धि की कामना की जाती है। इस आयोजन में श्री तुंगनाथ, भूतनाथ, दक्षिण कालिंका, नंदा देवी, उमा देवी, हनुमान जी आदि आमंत्रित किये जाते हैं। एक सुरम्य खुले स्थान पर श्रद्धालुओं का बहुत बडा समागम हुआ। आयोजन स्थल पर बिजली, पानी माईक, भण्डारगृह की व्यवस्था थी। पूरे क्षेत्र के श्रद्धालु लोग महिलाएं, बच्चे व बुगुर्ग पहुंच रहे थे। रडुवा काण्डई, जौरासी महड़ के युवक स्वयं सेवा में जुटे थे।
इस वर्ष 2023 में 24 मई से 02 जून तक चली यज्ञ समिति के अध्यक्ष, रडुवा के मोहन सिंह बर्त्वाल, सचिव शिशुपाल सिंह बर्त्वाल हैं। महड़ गांव के रमेश चन्द्र थपलियाल कोषाध्यक्ष हैं। समस्त ग्रामसभा प्रधान व क्षेत्र पंचायत सदस्य समिति के सदस्य हैं।![]()
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यज्ञ स्थल पर श्री तुंगनाथ, नंदादेवी, दक्षिण काली, उमा देवी, भूतनाथ रडुवा कांडई, मसोली, जौरासी व डुंगर तथा हनुमान जी उपस्थित थे।
तीस जूला भागवत कथा में व्यास पीठ में आचार्य पंडित विष्णु प्रसाद किमोठी ने देवी भागवत एवं आचार्य पंण्डित जगदंमा प्रसाद किमोठी ने शिव पुराण कथा का वाचन किया। विद्वान द्वय ने सारगर्भित ढंग से प्रवचन दिया। जनता मंत्रमुग्ध होकर श्रवण करती रही। आचार्य कमल किशोर किमोठी, पं0 जगदीश प्रसाद किमोठी (ब्रहमा), प0 अनसुया प्रसाद किमोठी, प0 संजय किमोठी, प0 रमेश चन्द्र थपलियाल, प0 सूर्यांश किमोठी, प0 द्वारिका प्रसाद सती, प0 जगदीश प्रसाद खाली, प0 सुभाष किमोठी, प0 चण्डीप्रसाद थपलियाल आदि जपार्ती थे। सूर्य प्रसाद किमोठी एवं प्रशांत गैरोला किशोर वय के छात्रों ने सस्वर रूद्री पाठ किया।
01 जून को 9 वर्ष से 13 वर्ष की कन्याओं ने बड़ी अलहादित करने वाली जल यात्रा निकाली । जो नंदा कुण्ड से भूतनाथ, रडुवा, सेम के उत्तरमुखी धारे से वनातोली स्थित प्राचीन यज्ञ स्थल से विशाल जुलूस के साथ वापस नंदा कुण्ड में आये, पूजा अर्चना व श्री संवाद के साथ सबका स्वागत हुआ।
इस सम्पूर्ण सप्ताह में यज्ञ स्थल नंदा कुण्ड क्षेत्र भागवत कथा एवं शिव पुराण के श्लोकों की ध्वनि से गुंजायमान रहा। सम्पूर्ण खदेड़ पट्टी की तीस जूला क्षेत्र में शास्त्र वर्णन की सुरभि बिखेरता रहा है। भागवत कथा स्थल में सभी देवताओं के विग्रह उपस्थित थे। दखिण काली शिशुपाल सिंह बर्त्वाल, नंदा देवी- हर्षपति राणा, उमा देवी-रमेश चन्द्र थपलियाल डुंगर, देवी महावीर सिंह बर्त्वाल, भूतनाथ रडुवा गजेन्द्र्र सिंह, काण्डई रघुवीर सिंह नेगी, जौरासी उपेन्द्र सिंह नेगी, डुंगर रणजीत सिंह नेगी, हनुमान राकेश बर्त्वाल मसोली व बचन सिंह नेगी रडुवा लगातार उपस्थित रहे। अनुष्ठान स्थल एक दैवीय वातावरण मय बना रहा।
सन् 1610 सन् 1635 के दौर में तिब्बत से आने वाले घोड़े व बकरियों के बालों में कुछ पेड़ों के बीज भी आये, जो एक वृक्ष के रूप में भूतनाथ रडुवा में दो पत्थरों के बीच में विकसित हुआ। सन् 1995 में एक दिन भूतनाथ में पूजा के समय मेरा ध्यान उस वृक्ष की तरफ गया, तो गांव वालों ने इस वृक्ष के बारे में बताया कि इस प्रजाति का यहां कोई पेड़ पहले नहीं था। अब दो और वृक्ष हो गये हैं। मैंने इस पेड़ की दो टहनियां पत्तों सहित निकाली और देहरादून लाया। वहां राष्ट्रीय वन अनुसंधान संस्थान में कार्यरत जे0आर0एफ0 डा0 मीनाक्षी रावत अपनी बेटी के द्वारा परीक्षण के लिए पहुंचाया तो वहं के वैज्ञानिकों ने परीक्षण के बाद बताया कि यह तिब्बती मूल का वृक्ष है जो भारत में केवल अरूणांचल प्रदेश में पाया जाता है। यह पशुओं के चारे के काम नहीं आता है और औषधीय पादप है।
इस अवधि में कुछ तिब्बती हूण घोड़ों और बकरियों को लेकर रडुवा गांव में आये तो सल्दी तोक में ठहरते थे और खेत के मालिकों की खेतों की रक्षा करते थे। कुछ साल बाद एक हूण मर गया तो वह देवता रूप में प्रकट हो गया। जिनकी खेती की रक्षा करता था वे उस देवता को पूजा चढ़ाते हैं। तिकोने खेत में रहने के कारण उस हूण को तिकोण्या देवता कहा जाता है।
इस अनुष्ठान में देहरादून, हल्द्वानी, दिल्ली, लखनऊ में रहने वाले कई प्रवासी महिला पुरूष व बच्चे शामिल हुये। वर्तमान सरकार के नारे चलो गांव की ओर का एक लक्ष्य भी पूरा हुआ।
अनुष्ठान में भागवताचार्य पं0 रामेश्वर प्रसाद किमोठी, आचार्य विजय प्रसाद किमोठी, बुजुर्ग पीढी के लोग उपस्थित थे। देहरादून से पधारे कुलवंती देवी, प्रभा सजवाण, डा0 मीनाक्षी रावत, ईशु रावत, रावत, शारदा देवी रौथाण, सुनैना, सुषमा रावत, राजेश्वरी भण्डारी ने देवियों के प्राचीन मंदिरों में जाकर दर्शन किये। एवं क्षेत्र के सौन्दर्य का नयन सुख प्राप्त किया। उनके साथ कई लड़कियां व महिलायें अनुष्ठान में लगातार शामिल रही।
नंदाकुण्ड क्षेत्र में कुण्ड स्थल पर बने नंदादेवी मंदिर के बाद से रडुवा के खातेदारों ने इस आयोजन के निमित सबने अपनी भूमि दान कर दी है। सबसे पहले सन् 2002 में महिपाल सिंह बर्त्वाल ने की। फिर मनवर सिंह बर्त्वाल, दिलबर सिंह बर्त्वाल, महेश्वर बर्त्वाल, कल्पी बर्त्वाल एवं जीत सिंह बर्त्वाल ने अपनी यहां की जमीन दान कर दी। इससे लोगों में बहुत बड़ा श्रद्धाभाव उमड़ा। रडुवा गांव के तेजपाल सिंह बर्त्वाल, पुष्कर सिंह बर्त्वाल, जीत सिंह बर्त्वाल पूर्ण समर्पण भाव से अनुष्ठान में रहे।
कुछ युवक व बुजुर्ग जिनमें किशन सिंह भण्डारी, जौरासी, महिपत सिंह भण्डारी रडुवा, गोविन्द सिंह भण्डार, काण्डई, प्रेम सिंह राणा काण्डई, प्रकाश राणा काण्डाई के परिवार से शिम्मी व अंजना ने बड़ा सहयोग दिया।
इस नन्दा कुण्ड के ठीक सामने जौरासी गांव में 28 दिसम्बर 1920 को मान सिंह भण्डारी के घर में एक बालक का नंदा का जन्म हुआ जिसका नाम नंदा रखा गया। यही नन्दा बाद में सम्पादक लेखक के बाद सन् 1971 में उत्तर प्रदेश का पहला पर्वतीय विकास मंत्री बना।