मां कंसमर्दिनी ने पहले ही कर दी थी कंस की मृत्यु की आकाशवाणी, बिजली बनकर हो गईं थी गायब
कृष्णा घिण्डियाल, उपासक मॉ कंसमर्दिनी
उत्तराखंड (uttarakhand) के प्राचीन शहर ऋषिकेश (rishikesh) से 104 किलोमीटर दूर गढ़वाल के श्रीनगर (srinagar) शहर में मां कंसमर्दिनी का मंदिर है। द्वापर युग में माता यशोदा की जिस कन्या को मथुरा नरेश कंस ने शिला पर पटक कर मारने का प्रयास किया था, वह बिजली बनकर इस जगह पर प्रतिष्ठित हुईं थी। इसी समय उन्होंने आकाशवाणी करते हुए कहा था कि कंस को मारने वाला जन्म ले चुका है। यहीं से वह योगमाया कंसमर्दिनी कहलाईं।
ऐसा कहा जाता है कि लगभग 1800 वर्ष पहले रेवड़ी गांव के रामचंद्र धनाई जब अपने खेतों में हल चला रहे थे तो उन्हें एक कन्या की आवाज सुनाई दी कि बेड़ू के पेड़ के पास मैं नग्न कन्या हूं, तुम्हारे पास जो भी वस्तु है उससे मुझे ढक दो, उन्होंने तांबे के बने बर्तन से कन्या को ढक दिया था। उसी समय से कंस मर्दनी मंदिर के रूप में अस्तित्व में आया। आदि काल से ही शिलाखंड पर देवी का यह मंदिर है। 1731 में बंपा सिंह थापा की अगुवाई में गोरखाओं ने यहां आने पर मंदिर का निर्माण कराया गया था।
श्रीनगर के कंसमर्दिनी मंदिर में शिलाखंड में योग माया की मूर्ति अंकित है। कन्या के स्वरूप में होने से यह ताम्रपत्र से ढकी रहती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि कंसमर्दिनी मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य के आदेश पर किया गया था। परिवार में सुख शांति समृद्धि व संतान दायिनी के रूप में माता को पूजा जाता है। श्रद्धालु नवरात्रों में माता की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। कंसमर्दिनी सिद्धपीठ का संचालन घिल्डियाल वंश के ब्राह्मण करते हैं।