ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के लखण गांव को नही मिली आज तक मूलभूत सुविधायें
कर्णप्रयागःभले ही केन्द्र व राज्य सरकार सूबे में शत प्रतिशत मूलभूत सुविधाएें देने का दावा कर रही हो लेकिन उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण व्लॉक के दूरस्त गांव लखण की तश्वीरें कुछ और ही बयां कर रही है जहां आजतक पैदल चलने तक का रास्ता आज तक नहीं बन पाया है,मोटर मार्ग तो यहां के ग्रामीणों के लिए आज के आधुनिक 5 जी सुपर स्पीड़ इंटरनेट के जमाने में भी सपने सरीखा है। ऐसा नहीं कि यहां के ग्रामीणों ने कभी अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए आवाज न उठाई हो। सामाजिक कार्यकर्ता आनन्द प्रकाश जोशी का कहना है कि वह अपने गांव के लिए शासन प्रसाशन से लगातार बीते कई वर्षो से सड़क,बिजली,पानी,पैदल रास्ते,स्वास्थ्य की मांग कर रहे है,लेकिन आज तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हो पाई है।
गैरसैंण व्लॉक के लखण गांव के लिए बिजली की लाईन 5 किलोमीटर दूर विनायकधार देवपुरी से बिछाई जानी है, लेकिन बिधुत विभाग द्वारा इसके लिए 80 लाख रूपये की धनराशि के साथ साथ वन विभाग की एनओसी मांगी गई है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि गांव की आवादी सिर्फ 29 है। सड़क निर्माण की मांग पर पीडब्लुडी द्वारा कहा जाता है कि इस गांव के लिए किसी भी जनप्रतिनिधि द्वारा सड़क का प्रस्ताव उन्हें नहीं दिया गया है।
ग्रामीणों ने अभी तक की सरकारों पर अनदेखी का आरोप लगाया है,उनका का कहना है कि आजादी के बाद अभी तक लखण गांव को मूलभूत सुविधाओं से बंचित रखा गया है। ग्रामीणों ने केन्द्र व राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि उनका नारा सबका साथ सबका विकास सही नहीं है क्योंकि उनके गांव लखन वर्तमान समय में भी मूलभूत सुविधाओं के आभाव में पाषण युग में जीने को मजबूर है।
मूलभूत सुविधाओं के आभाव में लखण गांव का पूर्ण रूप पलायन हो चुका है,सामाजिक कार्यकर्ता आनन्द प्रकाश जोशी का कहना है कि हम अपने पैत्रिक गांव में रिर्वस पलायन करने के लिए आतुर है लेकिन यहां मूलभूत सुविधा न होने के कारण रहना संभव नहीं है।
वहीं लखण गांव को सड़क व बिजली पंहुचने की मांग को लेकर ग्रामीण चन्द्रादत्त जोशी विनायकधार देवपुरी में बीते 5 फरवरी से अनशन पर बैठे है।लेकिन अनशनकारी चन्द्रादत्त जोशी की सुध शासन प्रसाशन द्वारा अभी तक नहीं ली गई है।
गौरतलब है कि, राज्य स्थापना के बाद मूलभूत सुविधाओं के आभाव में उत्तराखंड के लगभग सभी पर्वतीय जनपदों से लाखों लोगों को पलायन हो चुका है। उत्तराखंड में अभी भी कई गांव है जहां अभी तक सड़क,स्वास्थ्य आदि सुविधाओं के लिए ग्रामीणां को मीलों दूर पैदल चलना पड़ता है। सरकारी आंकडे व विकास के दावें भले ही कागजों में शानदार दर्शाये जा रहे हो लेकिन ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के गांव दूरस्त लखण की हालत साफ बयां कर ही है कि शासन प्रशासन को जमीनी हकीकतों को समझने की जरूरत है ताकि कागजी विकास के दावों को हकीकत में बदला जा सकें,और उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों से पलायन को रोककर सामरिक खतरे को कम किया जा सके।
भानु प्रकाश नेगी,हिमवंत प्रदेश न्यूज कर्णप्रयाग चमोली