July 21, 2025

हिलजात्रा पर्व कुमाऊं लोक संस्कृति और सभ्यता का अनूठा उदाहरण

पहाड़ो में लोकपर्व धार्मिक आस्था और संस्कृति का प्रतीक होने के साथ ही मनोरंजन का भी बेहतरीन जरिया है। आज भी इन पर्वों के प्रति शहरी हो या ग्रामीण किसी का भी लगाव कम नही हुआ है। आस्था और मनोरंजन को खुद में समेटा ऐसा ही एक पर्व है सोर घाटी पिथौरागढ़ का ऐतिहासिक हिलजात्रा पर्वजो पिछली 5 शताब्दियों से यहां बदस्तूर मनाया जाता रहा है।  

हिलजात्रा का इतिहास 500 साल पुराना

ये पर्व पूरे भारतवर्ष में केवल पिथौरागढ़ के सोरअस्कोट और सीरा परगने में मनाया जाता है। लेकिन इस हिलजात्रा की असल शुरूआत पिथौरागढ़ जिले के कुमौड़ गांव से हुई है। कुमौड़ गांव की हिलजात्रा का इतिहास करीब 500 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस गांव के चार महर भाई नेपाल में हर साल आयोजित होने वाली इन्द्रजात्रा में शामिल होने गये थे। महर भाईयों की बहादुरी से खुस होकर नेपाल नरेश ने यश और समृद्धि के प्रतीक ये मुखौटे इनाम में दिये थे। तभी से नेपाल की ही तर्ज पर ये पर्व सोरघाटी पिथौरागढ़ में भी हिलजात्रा बढ़ी धूमधाम से मनाया जाता रहा है।

 हिलजात्रा  का आकर्षण… लखिया भूत

 इस पर्व में बैलहिरनचीतललखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर जहां दर्शकों को रोमांचित करते हैं।  वही पहाड़ के कृषि प्रेम को भी दर्शाते है। इस पर्व का समापन लखिया भूत के आगमन के साथ होता है। जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है। लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है। जो लोगों को सुख और समृद्धि का आशिर्वाद देने के साथ ही अगले वर्ष आने का वादा कर चला जाता है। सदियों से मनाये जा रहे इस पर्व को हर साल बडे हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।

 

कृषि पर्व के रुप में मनाया जाता हिलजात्रा पर्व  

उत्तराखण्ड का पहाड़ी समाज प्राचीन काल से ही कृषि पर आधारित समाज है। यही वजह है कि यहां के अधिकांश लोकपर्व भी कृषि पर ही आधारित है। सोरघाटी पिथौरागढ़ में सावन के इस महीने को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। सातूं आठूं से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है।

सोर घाटी की संस्कृति का अनूठा उदाहरण

 हिलजात्रा पर्व का आगाज भले ही महर भाईयों की वीरता से हुआ हो लेकिन वक्त के साथ साथ इसे कृषि पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। धान रोपती महिलाए और बैलों को हांकता हलिया पहाड़ के कृषि जीवन को दर्शाते है। तेजी से बदलते इस दौर में जहां लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता से दूर होते जा रहे है। वही सोर घाटी के लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति लगाव अनूठा उदाहरण पेश कर रहा है।

 

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