प्रथम वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम : दो दिवसीय देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव 2025 संपन्न।
चमोली। भारत के अंतिम छोर पर स्थित देश के प्रथम गांव माणा में दो दिवसीय देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव 2025 का भव्य समापन हुआ। इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता (जीओसी-इन-सी सेंट्रल कमांड) ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम का समापन किया।
दो दिनों तक चले इस महोत्सव में विकास प्रदर्शनी और सैन्य प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसे स्थानीय लोगों और पर्यटकों द्वारा खूब सराहा गया। इस दौरान स्थानीय कलाकारों एवं विद्यार्थियों ने आकर्षक सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दीं, जिससे पूरा परिसर देवभूमि की लोकसंस्कृति से गूंज उठा।
कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्यमंत्री धामी ने विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को नकद धनराशि के चेक देकर सम्मानित किया। इसके उपरांत उन्होंने बद्री विशाल के दर्शन कर प्रदेश और देश की समृद्धि की कामना की।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव से न केवल सीमांत क्षेत्र माणा के लोगों में सांस्कृतिक गौरव की अनुभूति बढ़ेगी, बल्कि यहाँ पर्यटन और तीर्थाटन को भी नया आयाम मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाइब्रेंट विलेज मिशन से सीमांत गांवों में विकास की नई धारा प्रवाहित हो रही है, जिससे पलायन पर अंकुश लगने के साथ रिवर्स माइग्रेशन को भी बल मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि भारी वर्षा और आपदा के बावजूद चारधाम यात्रा में इस वर्ष अब तक 50 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे हैं, जो यात्रा की सुगमता और सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
वहीं ले. जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने कहा कि माणा में आयोजित यह महोत्सव भारतीय सेना के लिए गर्व का विषय है। प्रधानमंत्री द्वारा माणा को वाइब्रेंट विलेज घोषित किए जाने के बाद यहाँ विकास की गति तेज हुई है। उन्होंने बताया कि सेना सीमांत क्षेत्रों में न केवल सुरक्षा का दायित्व निभा रही है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है।
उन्होंने कहा कि सेना द्वारा चार स्थानों पर कम्युनिटी रेडियो स्टेशन स्थापित किए गए हैं ताकि स्थानीय लोगों को जानकारी और मनोरंजन दोनों उपलब्ध हो सकें। साथ ही सेना तपोवन क्षेत्र में सेब के बागान विकसित करने की दिशा में भी कार्य कर रही है।
सेना और पर्यटन विभाग के संयुक्त प्रयासों से आयोजित यह प्रथम वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम सीमांत पर्यटन, सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक विकास को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल साबित हुआ है।
