हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के 104 वें जन्मदिन के उपलक्ष में आयोजित परिचर्चा दून पुस्तकालय,देहरादून मे संपन्न हुई
परिचर्चा की अघ्यक्षता डॉ.सविता मोहन तथा परिचर्चा का संचालन डा. बीना बेंजवाल ने किया, वेलहम गर्ल्स की प्राध्यापिका नालंदा ने चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य की अंग्रेजी के कवियों कीट्स, वडवुड्स और शैले की कविताओं से तुलना करते हुए कहा कि संस्कृति,समय, और भौगोलिक दूरियों के बावजूद उनकी कविताओं में मृत्यु, एकाकी और उदासपन को लेकर एकरूपता देखने को मिलती है। एम.के.पी. की हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.विद्या सिंह ने अपने उदभोदन में कहा कि कविवर चन्द्रकुंवर बर्त्वाल अपने जीवन में ही मृत्यु को आत्मसात कर बैठे थे।
उन्होंने बर्त्वाल की कविताओं का काव्य पाठ भी किया जैसे- ‘जम कर बैठी पीठ पर मौत बिखरे बाल…. मुझे प्रेम की अमरपुरी में अब रहने दो, अपना सब कुछ दे कर कुछ आँसू लेने दो । आज की शिक्षा ब्यवस्था पर तंज कसते हुए मैकॉले के खिलौने का काव्य पाठ किया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए डॉ.सविता मोहन जी ने कहा कि सन् 1939 से 42 तक कवि निराला के साथ रहे, जिससे उनके साहित्य मे छायावाद और प्रगतिवाद दोनो का सम्मिश्रण दिखाई पड़ता है।समय साक्ष्य की कुसुम जी ने अपने अध्ययन के अनुभव साझा करते हुए बताया कि वे किसी भी वाद से परे थे (ही वज वियाड द एरा), वे एक जन्म-जन्मांतर के योगी थे, उनका गद्य जिसके लिए वो जाने ही नहीं जाते वो उनकी कविताओं से भी श्रेष्ठ है। जिसे उन्होंन मात्र 28 साल की उम्र में रच डाला। परिचर्चा में डॉक्टर हर्षमणि भट्ट जिन्होंने कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य पर शोध कार्य किया ने अपने उदभोदन में बताया कि जैसा संस्कृत में प्रकृति के लिए महाकवि कालिदास जी ने लिखा ठीक वैसे ही हिन्दी में अपने प्रकृति प्रेम को चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने प्रदर्शित किया है।
उन्होंने कहा कि श्रीदेव सुमन, डाक्टर पीताम्बर दत्त बर्थवाल तथा चन्द्रकुंवर बर्त्वाल समकालीन स्वतन्त्रता सेनानी थे। श्रीदेव सुमन के नाम पर विश्वविद्यालय खुला है, डॉ. बर्थवाल के नाम पर हिन्दी संस्थान बना हुआ है, ठीक इसी तरह प्रकृति के चितेरे कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के नाम पर भी ऐसे ही किसी संस्थान का नाम होना चाहिए। दून पुस्तकालय के सभागार में देहरादून के अनेक गणमान्य तथा साहित्य प्रेमी उपस्थित थे, जिनका आभार दून लाइब्रेरी के समन्वय साहित्यकार चन्दशेखर तिवारी ने किया।
रिपोर्ट- डॉ.मानवेंन्द्र सिंह बर्त्वाल, देहरादून।
