बड़े सेमिनारो के आयोजन से नहीं बल्कि ठोस कार्य योजना से सुधरेगा हमारा पर्यावरण


भानु प्रकाश नेगी,
पर्यावरण दिवस विशेष



आज के दिन विश्व भर में मनाए जाने वाला पर्यावरण दिवस वर्तमान समय में कई मायनों में बहुत खास दिन है, क्योंकि पर्यावरण न सिर्फ किसी एक देश का बल्कि संपूर्ण विश्व में रहने वाले प्राणी के लिए हर दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पर्यावरण दिवस का महत्व वर्तमान समय में इसलिए भी महत्वपूर्ण है की मानव द्वारा प्रकृति के अनावश्यक वह अंधाधुंध छेड़छाड़ से महा प्रलय जैसी स्थिति पैदा हो रही है। जिससे जनहानि के साथ साथ आर्थिक व पर्यावरणीय क्षति प्रकृति को पहुंच रही है।
बीते डेढ़ साल मैं जब कोरोना संक्रमण से पूरे विश्व में हाहाकार मच गया तब लॉकडाउन करने के बाद प्रकृति ने अपना जो स्वरूप दिखाया वह बहुत दर्शनीय वह सीख देने वाला था। विकास की दौड़ में अंधा होकर दौड़ रहा मानव वर्तमान समय में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की सभी हदें पार कर चुका है।
बीते कई दशकों पहले इंसान ने यह कभी नहीं सोचा था कि वह पानी को प्लास्टिक की बोतल में भरकर पियेगा और बूंद बूंद पानी के लिए तरसेगा, लेकिन वर्तमान समय में पृथ्वी पर पीने के पानी का संकट दिखाई दे रहा है आने वाले समय में और भयानक होने का संकेत दे रहा है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी के कारण लाखों लोगों की जान चली गई। लगातार जंगलों की कटान वह पेड़ पौधों की कमी से ऑक्सीजन का वायुमंडल में स्तर लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। जिससे मनुष्य कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित होकर जान गवा रहा है ।अगर हम अभी भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं की हमें ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर सांस लेने होगी। पर्यावरण संरक्षण करने के लिए हर एक मनुष्य को धरती पर अधिक से अधिक पेड़ लगाने के साथ-साथ प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़, विदोहन रोकना होगा
उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है ।विश्वप्रसिद्ध चिपको आंदोलन चमोली जनपद के reni गांव मैं स्वर्गीय गौरा देवी के नेतृत्व में हुआ था। इसके साथ ही भारत सहित दुनिया की कई देशों में भावनात्मक रूप से पर्यावरण बचाने की अनोखी पहल मैती आंदोलन पद्मश्री कल्याण सिंह रावत मैती चमोली जनपद के ग्वालदम से शुरू किया था।
कुल क्षेत्रफल के लगभग 71% भूभाग में वन क्षेत्र वाले प्रदेश उत्तराखंड के पर्वतीय जिले शुद्ध प्राकृतिक जल स्रोतों व ताजी ठंडी हवाओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है ।लेकिन यहां पर विकास के नाम पर प्रकृति के साथ हो रही अनावश्यक छेड़छाड़ लगातार कई प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन चुकी है। इसका ताजा उदाहरण तपोवन Reni आपदा है इन त्रासदियों में अभी तक हजारों लोगों की जान के साथ-साथ अरबों रुपए की आर्थिक क्षति भी पहुंची है ।लेकिन बावजूद इसके केंद्र व राज्य सरकार लगातार यहां पर बड़ी जल विद्युत योजना बना रही है। जो आने वाले समय मैं बड़ी तबाही का कारण बन सकती है। पर्यावरण की दृष्टि से अति संवेदनशील माने जाने वाले यहां के उच्च हिमालई क्षेत्र में मानव की अत्यधिक आवाजाही प्रकृति व पर्यावरण को अत्यंत नुकसान पहुंचा रही है ।एक अनुसंधान के अनुसार हिमालई क्षेत्रों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जो समुद्र तट पर बसे कई शहरों को जलमग्न कर सकते हैं।
पर्यावरण दिवस के अवसर पर हर साल पर्यावरण विद चिंता जताते हैं सफेदपोश बड़े-बड़े सेमिनारो का आयोजन कर पर्यावरण के प्रति गंभीर चिंता जताते हैं, लेकिन धरातल पर पर्यावरण बचाने की कोई ठोस मुहिम की शुरुआत नहीं की जाती है ।लेकिन साल दर साल ग्लोबलाइजेशन के कारण पर्यावरणीय असंतुलन होने से बिना मौसम बारिश, और बारिश के मौसम मैं सूखा देखा जा रहा है। साथ ही प्राकृतिक जल स्रोत लगातार सूखते जा रहे हैं जो आने वाले समय के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। बावजूद इसके गंभीरता से इस विषय पर ठोस कार्य धरातल पर नहीं उतर पा रहे हैं। पर्यावरण असंतुलन वह प्राकृतिक छेड़छाड़ के लिए सिर्फ केंद्र व राज्य सरकार को दोषी ठहराना उचित नहीं है बल्कि पर्यावरण बचाना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी भी है साथ ही पर्यावरण को किसी भी प्रकार की क्षति न पहुंचे इसके लिए गंभीरता से कार्य योजना बनाकर उसे धरातल पर उतारने का सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है । आने वाले समय मैं गंभीर पर्यावरणीय असंतुलन से बचने के लिए हम सबको को गंभीरता से प्रयास करना चाहिए ।
