प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के जन्म दिवस पर शत शत नमन



-कुसुम रावत
बस यूँ ही- ”हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल”
प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल का जन्म दिवस
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दुःख ने ही मुझको ”प्रकाश” का वेग दिखाया
सुख ने मुझको हल्का सा ही ”राग” सुनाया.
आज इन गहरी पंक्तियों के रचियता प्रकृति के चितेरे कवि ”चंद्रकुंवर बर्त्वाल” का जन्मदिवस है. वह 20 अगस्त 1919 को मंदाकनी नदी के बांये तट के गाँव मालकोटी में पैदा हुए इए और 14 सितम्बर 1947 को मंदाकनी के ही बाएं तरफ पवांलिया गाँव में उनका निधन हुआ. मात्र 28 साल 24 दिन की उम्र में जीवन में उन्होंने 1000 कवितायेँ, 24 कहानियां, 3 एकांकी नाटक और यात्रा वृतांत बद्रीनाथ और केदारनाथ का सृजन किया.

प्रकृति, वन हिमालय, लखनऊ. देहरादून, हरिद्वार, देहरादून, नागनाथ, पवांलिया, मसूरी और जहाँ जहाँ उनका निवास रहा सभी उनकी रचना के विषय बन गए. काफल पाकु, यम-यमी संवाद जैसी लम्बी कवितायेँ भी उन्होंने लिखी. कठोपनिषद के ‘’यमराज-नचिकेता संवाद’’ के बाद हिंदी में पहली बार किसी ने यम के विषय में कविता लिखी. प्रकृति वेदना और सौन्दर्य हिमवंत कवि के विषय रहे हैं.
हिंदी में प्रसाद और निराला के समतुल्य, गुजराती के कलापी, बांग्ला में रविन्द्र नाथ टैगोर और अंग्रेजी में शैली व कीट्स से उनकी तुलना की जाती है. समीछ्क उनको ‘’हिंदी का कालिदास’’ भी मानते हैं. कुछ विश्वविद्यालयों में उनकी कवितायेँ पाठ्यक्रम में समाहित हैं. ‘’हिमालय’’ शीर्षक कविता उन्होंने पौड़ी में 15 साल की उम्र में लिखी.
साहित्यकार ”डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल” ने पिछले 40 सालों में ”चन्द्रकुंवर शोध संस्थान” के माध्यम से कविवर के साहित्य के उन्नयन को प्रोत्साहित किया. साथ ही कवि की कई जगह मूर्तियाँ लगाई. डॉ बर्त्वाल द्वारा अपने अलग-अलग कामों से जनमानस का ध्यान कवि के साहित्य की ओर आकृष्ट किया गया।
हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के जन्मदिन पर कवि का भावपूर्ण स्मरण!

