March 17, 2025

एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पीजी शोधार्थियों एवम् उनके मेंटर्स ने किया गौरवान्वित

PG of SGRR Medical College The researchers and their mentors made them proud

 

देहरादून। श्री गुरु राम राय इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज के पी.जी. माईक्रोबायोलाॅजी अध्ययनरत विद्यार्थियों डाॅ. नताशा बडेजा व डाॅ. सौरभ नेगी व उनके गाइड डाॅ डिम्पल रैणा, डाॅ ईवा चन्दोला की देखरेख में अपने उत्कृष्ट शोध कार्याे के बूते पूरे भारत में अपना परचम लहराया है। एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज एवम् श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के चैयरमैन श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने शोध कार्य में इस राष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाने वाले डाॅ. नताशा बडेजा, डाॅ. सौरभ नेगी व उनके मार्गदर्शक डाॅ. डिम्पल रैणा व डाॅ. ईवा चन्दोला को आर्शीवाद व शुभकामनाए दी हैं।
श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज़ के माइक्रोबायोलाॅजी पी.जी. मे अध्ययनरत छात्र सौरभ नेगी व छात्रा नताशा बडेजा का चयन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आई.सी.एम.आर.) की एक-एक लाख रूपये की छात्रवृति के लिए हुआ है। डाॅ. नताशा बडेजा यह शोध-कार्य एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज एवम् श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल की माइक्रोबायोलाॅजी प्रोफेसर व सैन्ट्रल लैब डायरेक्टर डाॅ. डिम्पल रैणा की देखरेख में कर रही हैं। डाॅ डिम्पल रैणा ने जानकारी दी कि देशभर के सिर्फ 120 पीजी डाॅक्टरों को यह स्काॅलरशिप मिलती है।
डाॅ डिम्पल रैणा ने जानकारी दी कि डाॅ. नताशा बडेजा “इवेल्यूएशन ऑफ काॅलिस्टिन रैजिस्टैंस एण्ड डिटैक्शन ऑफ एमसीआर-1 जीन इन मल्टी ड्रग रेजिस्टैंट ग्राम नेगिटिव क्लीनिकल आईसालेटस एैट टर्शरी केयर हाॅस्पिटल इन उत्तराखण्ड” विषय पर शोध कर रही हैं। काबिलेगौर है कि लंबे समय तक किसी मरीज़ के द्वारा एक नियमित समय अन्तराल पर एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल शरीर में कीटाणुओं के प्रतिरोधक क्षमता के प्रभाव को प्रभावित करता है। इस शोध के अन्तर्गत यह पता लगाया जा रहा है कि बैक्टीरिया की रोकथाम में उच्च श्रेणी की एंटीबायोटिक्स दवाओं का प्रभाव कितना प्रभावी साबित हो रहा है और इनमे उच्च स्तर की प्रतिरोधक क्षमता लाने वाले जीन्स की भूमिका क्या और कितनी है ? विशेषकर आई.सी.यू. मे भर्ती अति गंभीर मरीजो को डाॅक्टरों द्वारा दी जाने वाली दवाईया असर नही करती और आज के समय में कुछ गिनी चुनी एंटीबायोटिक्स ही हैं जो गम्भीर रोगियों पर असर करती हैं लेकिन इनमें भी प्रतिरोध आने की वजह से इन मरीजों में  इलाज के बहुत कम विकल्प रहते हैं।
डाॅ. डिम्पल रैणा ने बताया कि डाॅ. नताशा बडेजा का यह शोध कार्य रोगियों व डाॅक्टरों के लिए उम्मीद की नई उगती किरण है क्योकि कालिस्टिन और ऐसी ही कुछ उच्च स्तरीय एंटीबायटिक्स विशेषकर गंभीर रोगियों में दी जाती है जहां टायर 1 एवम् टायर 2 एंटीबायटिक्स काम नहीं करती हैं।
वही डाॅ. सौरभ नेगी का शोध- कार्य एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज की माइक्रोबायोलाॅजी प्रोफेसर डाॅ. ईवा चन्दोला के नेतृत्व व मार्गदर्शन में किया जा रहा है। डाॅ. सौरभ के शोध के संबंध में जानकारी देते हुए डाॅ. ईवा चन्दोला ने बताया यह शोध मल्टी ड्रग रेजिसटेट टयूबक्लोसिस (टी.बी.) के विषय में की जा रही है। उन्होने बताया कि शोध कार्य का उद्देश्य टी.बी. रोगाणु के उन जीन को पहचानना है जो कि रोगी को दी जा रही दवाईयों के विरूद्व प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर दवाईयों को बेअसर करती है। उन्होने बताया कि आने वाले समय में इस शोध के परिणाम निर्णायक साबित होंगे जो डाॅक्टरों को उनके उपचार मेें मागदर्शन करेंगे।

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