चमोली जनपद के इस गांव में नहीं होती आज भी हुनमान जी की पूजा
पुष्कर सिंह राणा,समाजसेवी,जोशीमठ
उत्तराखंड देश और दुनियां में तीर्थाटन व पर्यटन का हब बनता जा रहा है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता व आवोहवा से जहां सैलानी मोहित हो जाते है। वहीं तीर्थाटन के लिए यहां सैकड़ों धार्मिक स्थाल है जिनमें आज भी दैवीय तत्व पुरातन काल की तरह विद्यमान है। यहां के कई स्थान आज भी हमारे धार्मिक ग्रन्थों को चरितार्थ करते है।
चमोली जनपद के जोशीमठ विकास खण्ड अन्तर्गत द्रोणागिरी पर्वत की तलहटी पर द्रोणागिरी नामक गांव बसा हुआ है। मान्यता है कि श्रीराम-रावण युद्ध में मेघनाद के दिव्यास्त्र से लक्ष्मण मुर्छित हो गए थे तब हनुमानजी द्रोणागिरी पर्वत संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे। यहां के लोग इस पर्वत को देवता मानते हैं। हनुमानजी इस पर्वत का एक हिस्सा ले गए थे, इस कारण गांव के लोग हनुमानजी की पूजा नहीं करते हैं। आज भी द्रोणागिरी पर्वत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ लगता है इस हिस्से को हम आसानी से देख सकते हैं। द्रोणागिरी पर्वत की ऊंचाई 7,066 मीटर है यहां शीतकाल में भारी बर्फबारी होती है। इस वजह गांव के लोग यहां से दूसरी जगह रहने के लिए चले जाते हैं। गर्मी के समय जब यहां का मौसम रहने योग्य होता है तो गांव के लोग वापस यहां रहने के लिए आ जाते हैं।
जोशीमठ से मलारी की तरफ लगभग 50 किलोमीटर आगे बढ़ने पर जुम्मा नामक स्थान है। यहीं से द्रोणागिरी गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है। । संकरी पहाड़ी पगडंडियों वाला तकरीबन दस किलोमीटर का यह पैदल रास्ता बहुत कठिन है। ट्रैकिंग पसंद करने वाले काफी लोग यहां पहुंचते हैं।