June 25, 2025

वनाग्नि ने उतराखण्ड में मचाया कोहराम वनविभाग की कार्य प्रणाली पर उठे सवाल

Forest fire created havoc in Uttarakhand, questions raised on the working system of forest department

 

देहरादूनःप्रदेश के कुमाऊं व गढ़वाल वन प्रभागों के जंगल धूं धूं कर जल रहे है। लेकिन वन विभाग के वनाग्नि कंट्रोल के दावे इस बार भी हवाई किले साबित हो रहे है। जिम्मेदार अधिकारियों की असंवेदनशीलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि विभाग के द्वारा प्रमुख वन सरंक्षक वनाग्नि के अतिरिक्त मीडिया की सूचना के लिए अतिरिक्त अधिकारी को अभी तक नियुक्त नहीं किया गया हैं। क्योंकि अपर प्रमुख वन संरक्षक वनाग्नि निसांत बर्मा के पास अपर प्रमुख वन संरक्षक नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन व एक अन्य जिम्मेदारी भी है। ऐसे में उलझन में है कि वह वनाग्नि कंट्रोल के लिए मीडिया से रूबरू हो या वन विभाग के अतिरिक्त विभागों के कार्य को संभाले?
यूं तो उत्तराखंड के अनके क्षेत्रों में वनाग्नि की घटनायें सर्दी के मौसम से जारी है लेकिन अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह से कुमाउं मण्डल के अल्मोड़ा वन प्रभाग,चम्पावत,रामनगर वन प्रभागों के अतिरिक्त गढ़वाल मंडल के नरेन्द्र नगर वन प्रभाग,केदारनाथ वन प्रभाग,गढ़वाल वन प्रभागों में भीषण आग लगने से हर जगह हा हा कार मचा हुआ है।
वही वन विभाग इस आग का कारण आड़ा फूकान, व आम लोगांे को मानता है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार अभीतक 4 लोगांे को आग लगाने के मामले में गिरफतार किया गया है। जिन पर आई पीसी की धारा व वन एक्ट के अर्न्तगत सख्त कार्यवाही की जा रही है।
भयानक रूप से फैलती वनाग्नि के स्थाई नियंत्रण के लिए पर्यावरण प्रेमी बीते कई समय से राज्य सरकार और वन विभाग को उत्तराखंड के जंगलों से चीड़ हटाने और उन्हें फलपट्टी में विकसित करने समेत अनेक सुझाव दे चुके है। लेकिन राज्य सरकार व वन विभाग की समझ में यह बात अभी तक नहीं आई है।
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के ताजा आंकड़ों की बात करें तो अभी तक 656.55 हेक्टेयर जंगल आग से खाक हो चुका है। जिसमें कुल 544 आग की घटनायें सामने आई है।वही इन सब घटनाओं से अभी तक 14,02,331 रूपये का नुकसान हो चुका है। चिन्ता की बात यह है कि पिछले 24 घंटे में आग की 54 घटनायें सामने आई हैं। जो वन विभाग के संज्ञान में र्है। इसके अतिरिक्त कई ऐसे घटनायें है जिनकी सूूचनायें वन विभाग तक नहीं पंहुची है।
उत्तराखंड में हर साल जलने वाले हजारों हेक्टेयर जंगलों से न सिर्फ करोड़ों पेड़ जलकर राख हो रहे है बल्कि यहां की दुर्लभ जैव विविधता,व विभिन्न प्रकार के वन्य जीवों का जीवन भी खतरे में पड़ा हुआ है। वनाग्नि के कारण जल के प्राकृतिक स्रोत भी सूखने लगे है। तापमान बढ़ने से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे है। जिससे सम्पूर्ण जीवजगत पर घोर संकट के बादल छाने लगे है। लेकिन इन सब के बावजूद भी राज्य सरकार केन्द्र सरकार, वन विभाग के साथ साथ आम आदमी अपनी जिम्मेदारियों का दोषारोपण एक दूसरे पर करने से बाज नहीं आ रहा है। जरूरत इस बात की है कि जंगलों की आग व पर्यावरण संतुलन के लिए जब तक प्रत्येक मनुष्य धरातल पर प्रयास नहीं करेगा तब तक पर्यावरण को यूं ही नुकसान होता रहेगा। तब वह दिन दूर नही जब भूख व प्यास से मानव समेत इस धरती के जीव जन्तु तड़फ तड़फ कर अपनी जान दे देंगे।
-भानु प्रकाश नेगी,हिमवंत प्रदेश न्यूज देहरादून

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