उत्तराखण्ड में जलवायु परिवर्तन से बढ़ती आपदाएँ बनी चिंता का विषय




उत्तराखण्ड में जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान ने पर्यावरण प्रेमियों की चिंता बढ़ा दी है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग से दुनियाभर में पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी, ग्लेशियरों का लगातार सिमटना, मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ आना, हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन, भूधंसाव, अत्यधिक वर्षा होना या बहुत कम वर्षा होने जैसी अनेक घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं।
उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में हाल ही में हुई बादल फटने की घटनाओं से हुई तबाही ने इस विषय पर गंभीरता से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। वहीं मौसम और उसके प्रभावों पर काम करने वाली दिल्ली की संस्था क्लाइमेट ट्रेड्स ने उत्तराखण्ड में पिछले कुछ वर्षों से आ रही आपदाओं के कारणों और उनके समाधान हेतु देहरादून स्थित एक निजी होटल में पर्यावरण प्रेमियों व विषय विशेषज्ञों के साथ गहन चिंतन-मनन किया।
इस दौरान क्लाइमेट ट्रेड्स ने एक रिसर्च पेपर का भी विमोचन किया, जिसमें उत्तराखण्ड में आई आपदाओं के साथ-साथ विशेषज्ञों की राय भी प्रस्तुत की गई है।
क्लाइमेट ट्रेड्स की लीड रिसर्च यूनिट की डॉ. पलक बालियन का कहना है कि,
“बीते कुछ वर्षों से उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय आपदाओं में तेजी आई है। जिस पर हम डेटा एकत्र करते हैं, ताकि आने वाले समय में लोगों को पहले से चेताया जा सके और जान-माल का नुकसान कम से कम हो।”
वहीं कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर पधारे पद्म विभूषण अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि,

“शहरों की बदलती लाइफस्टाइल के परिणाम आज पहाड़ों में आपदाओं के रूप में सामने आ रहे हैं।”
इस गंभीर विषय पर विचार व्यक्त करते हुए डिप्टी डायरेक्टर जनरल, इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट एजुकेशन एंड रिसर्च विनय कुमार ने बढ़ती आपदाओं का कारण तेजी से हो रही पेड़ों की कटाई बताया। उनका कहना है कि,
“पेड़ भूस्खलन, मृदा क्षरण और भूधंसाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेड़ कटने का असर सीधे तौर पर नदियों और जलस्रोतों पर पड़ता है।”
उत्तराखण्ड में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं ने यहाँ के जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसके लिए अवैध निर्माण और अनियमित बसावट सीधे तौर पर दोषी नज़र आते हैं। प्रोफेसर वाई. पी. सुन्द्रियाल का कहना है कि,
“विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने से पहले उस क्षेत्र से संबंधित रिसर्च पेपर का अध्ययन आवश्यक है। विज्ञान और विकास के संतुलन से ही आपदाओं में कमी लाई जा सकती है।”
इस महत्वपूर्ण सेमिनार में अन्य विषयों के विशेषज्ञों ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने केयरिंग कैपेसिटी के अनुसार हिमालय में जनसंख्या और पर्यटकों की आवाजाही को नियंत्रित करने तथा देवभूमि के अनुरूप आचार-विचार अपनाने पर बल दिया।
विशेषज्ञों ने इस बात पर भी गहन चिंता जताई कि जंगलों की अवैध कटाई और अत्यधिक फॉसिल फ्यूल के उपयोग से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, जिसके कारण ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं।