उत्तराखण्ड में आखिर कब तक लीक होते रहेगें पेपर




उत्तराखण्ड में पेपर लीक मामले की चर्चा पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के अनेक राज्यों में हो रही है। पहाड़ से लेकर मैदान तक—चाय की दुकान, नुक्कड़, सब्ज़ी की दुकान, दफ़्तर, स्कूल या खेल का मैदान—हर जगह पेपर लीक की चर्चा लगातार गर्मा रही है।
अपने भविष्य को लेकर चिंतित बेरोज़गार युवा बेरोज़गार संघ के बैनर तले इन दिनों देहरादून के परेड ग्राउंड में डेरा डाले हुए हैं, जहाँ उनकी तादाद हर दिन बढ़ती जा रही है।
सत्ताधारी पार्टी के बड़े नेताओं के बयान इतने शर्मनाक हैं कि पीड़ित युवा आग-बबूला हो रहे हैं। बीजेपी के नेताओं में अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और शिक्षा मंत्री घन सिंह रावत के बयानों की जितनी निंदा की जाए, उतनी कम है। बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष जी.एस. मार्तोलिया यह कहने लगे कि यह पेपर लीक का मामला नहीं है। इतना ही नहीं, वे बेशर्मी से यह भी कहते नज़र आ रहे हैं कि “सिर्फ तीन पेज ही तो बाहर आए हैं।”

सवाल यह है कि जिस मामले के लिए पूर्व आईएएस आर.बी.एस. रावत को दो साल तक जेल में रखा गया, उसी तरह का दोषी नज़र आने पर भी जी.एस. मार्तोलिया को क्यों बचाया जा रहा है? पटवारी परीक्षा का पेपर लीक होने पर दोबारा परीक्षा आयोजित करने की मांग राज्य सरकार को क्यों सही नहीं लग रही है?
इस पेपर लीक मामले में हाकम सिंह को जेल में डाल दिया गया है, लेकिन बाहर और कितने हाकम सिंह हैं, इसका अभी किसी को अंदाज़ा नहीं है।उत्तराखण्ड जैसे विकट भूगोल और विषम परिस्थितियों में बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अपना गांव-घर छोड़कर, विभिन्न शहरों में छोटे-छोटे कमरों में रहकर अपने बच्चों के सुनहरे सपने देखने वाले उन मां-बाप पर क्या बीत रही होगी, जिनकी पूरी ज़िंदगी बच्चों का भविष्य संवारने में गुजर जाती है? उन बेरोज़गार युवाओं के सपनों का क्या, जो बीते कई सालों से सरकारी नौकरी पाने के लिए दिन-रात एक करते हैं, और जब परीक्षा का समय आता है तो पेपर लीक हो जाता है।
उत्तराखण्ड में यह कहानी अब आम हो चुकी है। मामला इतना गंभीर है कि हताश और निराश युवा अब किसी भी हद तक जा सकते हैं। राज्य सरकार ने यदि जल्द कोई ठोस निर्णय नहीं लिया, तो यहां नेपाल जैसी स्थिति भी बन सकती है।
Bhanu Prakash Negi