क्या आज का किसान सिखण्डी की भूमिका में है?



पिछले वर्ष किसान आन्दोलन को देखकर लगा कि किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहें है। परन्तु किसान नेताओं का रैवेया धीरे-धीरे देश के प्रत्येक नागरिक को समझौने का मौका मिला, क्योंकि आन्दोलन को जारी हुए एक वर्ष हो चुका है। एक वर्ष में किसान नेताओं को कई टीवी डिबेड में लोगों ने सुना। सरकार से हुई कई वार्ता के दौर को अखबारों के माध्यम से समझने का मौका मिला। किसान नेता राकेश टिकैत के आन्दोलन प्रणाली से स्पष्ट झलकता है कि राकेश किटैत किसानों को सिखण्डी बनाना चाहते हैं। जिससे कि उन्हें राजनैतिक फायदा मिलता रहे। और उससे भी बड़ी बात कि राकेश टिकैत भी किसी अन्य राजनैतिक पार्टीयों के सिखण्डी प्रतीत होते हैं। किसानों के साथ पूरे देश की सहानूभूति है क्योंकि किसान को अन्नदाता कहा गया है। उन्हें उनका हक मिलना चाहिए। परन्तु हक का मतलब यह नहीं कि देश की संसद ने जिन कानूनों पर मुहर लगायी है, उन्हें ही किसान विरोधी कह कर सड़कों पर हुदड़ंग मचाओ। स्पष्ट शब्दों में हक का अर्थ यह कि हक कर्तव्य निभाने के लिए दिया जाता है, ना कि अनुचित निजी लाभ, सनक, मिथ्याभिमान को पूरा करने के लिए।।। परन्तु राकेश टिकैत जिस तरीके से बंगाल चुनाव में सक्रीय रहे, उससे साफ जाहिर होता है कि वे भी राजनैतिक पार्टियों के सिखण्डी हैं। सरकार/संसद/सर्वोच्च न्यायालय को चाहिए कि इस तरह के सिखण्डियों से निपटने के लिए भी कड़े कानून बनने चाहिए। जिससे देश का नुकसान न हो। जितना समय और धन सरकार या कोर्ट ने इन बेफिजूल कार्यों को सुलझाने में खर्च किया है, इससे तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों को 4 साल का बजट दिया जा सकता है। क्या कलयुग का सिखण्डी सत्य और सही की पहचान भूल चुका है। अब भीष्मपितामह को तीर चलाना ही चाहिए। ताकि देशवासियों का नुकसान बच सके।।

– संबंधित आर्टीकल में सिखण्डी (‘अन्नदाता’ शब्द की आड़ को कहा गया है)
– केएस गुरानी

