शिक्षक एस के शर्मा ने महेश उपाध्याय की कविता के माध्यम से किए अपने दिल के उद्गार प्रकट


… एक बच्चे की तरह प्यार से पाला है ……
तुम्हें अपने हाथों के सहारों से सँभाला है तुम्हें ।
बाप के दिल की तरह हम भीने जिगर फैलाकर
हमने मारा भी, मारा है मगर सहलाकर।
आज उस प्यार को किस तौर विदाई दे दूँ ।
भर के वरदान में सारी ही पढ़ाई दे दूँ।
काश। कुछ ऐसा हुनर मेरी जुबाँ में होता।
स्वर्ग का भूमि से होता नहीं है समझौता।
हम मुसाफिर की तरह आके चले जाते हैं।
फूल-सा खिलके बहारों में बिखर जाते हैं।
गन्ध अपनी तुम्हें देते हैं। बहुत ख़ुश होकर
और हम ख़ुश हैं ये ख़ुशबू को बीज-सा बोकर।


तुम इसे अपने पसीने से सींचना, बोना
और फिर देश के आँगन में सुर्ख़रू होना।
ज्ञान की गन्ध पसीने में मुस्कराती है।
यह खिज़ाओं के बग़ीचों में लहलहाती है।
तुम भी इस देश के आँगन में जगमगाओगे
हमको उम्मीद , सितारों से चमचमाओगे।
रात को दीप, सुबह आफ़ताब बन जाओ
हर मुसीबत में चट्टानों की तरह तन जाओ।
ज़िन्दगी नींद से पहले का नाम है गोया।
भिड़ना तूफ़ान से वीरों का काम है गोया।
इम्तहाँ कुछ नहीं तूफ़ान का छोटा भाई।
तोड़ दो इसकी नसें ले के एक अँगड़ाई।