February 16, 2025
   

Sexual violence, question on our humanity: Dr. Pawan Sharma

 

आज हमारे समाज में बढ़ते यौन अपराध हमें इस बारे में सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि क्या हमारी इंसानियत आधुनिकता के साथ समाप्त होती जा रही है और हम भी कुछ जानवरों में मिलने वाली क्रूर मानसिकता के गुलाम होते जा रहे हैं? यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट, जो कि वर्ष 2010 से 2022 के बीच 120 देशों और क्षेत्रों में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार वैश्विक स्तर पर 37 करोड़ यानी हर 8 में से एक लड़की 18 वर्ष की आयु से पहले ही दुष्कर्म का शिकार होती है और यौन हिंसा का शिकार बनती है, वहीं 11 में से एक लड़का भी यौन उत्पीड़न का शिकार बनता है।
बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के ऐसे आंकड़े हमें हमारी इंसानियत की परिभाषा के बारे में फिर से सोचने को विवश करते हैं और शर्मिंदा भी करते हैं।
शोध बताते हैं कि कैसे यौन शोषण के बाद बढ़ा तनाव का स्तर और आघात बच्चों के मानसिक रसायनों को, उनकी मानसिक संरचना को, और यहां तक कि जीन अभिव्यक्ति को भी बदल देता है।
शोधों के अनुसार, मानसिक विकारों से पीड़ित 20 से 40 प्रतिशत व्यक्तियों का बचपन में यौन शोषण हुआ है। यही नहीं यौन शोषण के शिकार किशोर, संबंधो के प्रति नकारात्मकता का भाव रखते हैं और रिश्तों में अविश्वास और उदासीनता रखते हैं, जिससे सामान्य जीवन जीने में बाधा उत्पन्न होती है और वे नशे की लत के आदि होने लगते हैं या आत्मघाती कदम उठाते हैं।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि ज्यादातर बच्चे उन्हीं लोगों द्वारा यौन हिंसा का शिकार होते हैं, जिन पर उन्हें भरोसा होता है। अध्ययन बताते हैं कि बाल यौन उत्पीड़न की घटनाओं में अधिकतर अपराधी कोई परिचित ही होता है, जो कि खतरनाक है और इससे निपटने के लिए एक बड़ी चुनौती है।
ऐसे मामले पारिवारिक प्रतिष्ठा बचाने की कि सोच की वजहों से दबा दिये जाते हैं, लेकिन ऐसे मामले पीड़ित बच्चों के मन में ऐसा गहरा घाव बनाते हैं वे जीवन भर उनका दंश नहीं भूल पाते हैं।
लड़कियों के प्रति यौन दुर्व्यवहारों को लेकर समाज कुछ हद तक सम्वेदनशील दिखता है और जागरूकता बढ़ने की वजह से इसके मामले भी पहले से ज्यादा दर्ज होने लगे हैं, लेकिन लड़कों के खिलाफ यौन शोषण के मामलों की ज्यादा सम्वेदनशीलता से नहीं लिया जाता। अध्ययन बताते हैं कि किशोर लड़कों के प्रति समाज कहीं अधिक निष्ठुर और सख्त तरीके से सोचता है और ऐसा मां कर चलता है कि चूंकि किशोर लड़कों के यौन शोषण से उनकी शुचिता भंग नहीं होती, इसलिए यह किसी चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए।
हमें यह समझना होगा कि यौन शोषण कभी भी लिंग आधारित पीड़ा या अपराध नहीं है। यौन शोषण से जितना किसी लड़की को नुकसान पहुंचता है उसी तरह लड़कों को भी नुकसान होता है। अगर लड़कों के प्रति यौन शोषण को भी उसी सम्वेदनशीलता के साथ रोकने की कोशिशें नहीं की गईं, तो आने वाले कुछ ही वर्षों में अवसादग्रस्त पुरुषों की संख्या इतनी ज्यादा हो जायेगी कि उसकी गिनती करना सम्भव नहीं हो सकेगा।
यौन उत्पीड़न के लिए बने तमाम कानूनों के साथ इस कलंक को समाप्त करने के लिए सामाजिक चेतना और जागरूकता की जरूरत है। पीड़ित व्यक्ति जितनी जल्दी यौन शोषण का खुलासा करता है, उतनी ही जल्दी वह इसके नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभावों और परिणामों से बच सकता है।

डॉ. पवन शर्मा (द साइकेडेलिक)
मनोवैज्ञानिक, फोरगिवनेस फाउंडेशन सोसाइटी

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