भारतीय ज्ञान परम्परा ने दी है विश्व को नई दिशा:प्रो. अंजू अग्रवाल


डॉ. शिवानन्द नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग(चमोली) के संस्कृत विभाग में द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। कार्यक्रम का प्रांरभ सरस्वती वंदना से हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा निदेशक प्रो. अंजू अग्रवाल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा ने अतीत से ही समस्त जगत का कल्याण की भावना दर्शाते हुए विश्व का नेतृत्व किया है। आज आवश्यकता है कि हम पुनः उन मूल्यों को पहचानकर नवीन अन्वेषण करें। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. डी. एस. राणाने गम्भीर विषय पर संगोष्ठी के आयोजन के लिए महाविद्यालय को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारत की आत्मा, हमारी धरोहर ये परम्परा है जिसे ऋषि मुनियो ने अपने गम्भीर अध्ययन से हमें सौंपा है। हमें इस धरोहर की रक्षा करने करने साथ ही इसके उन्नयन में अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। मुख्य वक्ता हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर से आए मुख्य वक्ता डॉ. विश्वेश कौशिक ने कहा कि भारत की आत्मा संस्कृत भाषा है इसमें समस्त ज्ञान विज्ञान निहित है। लेकिन दुर्भाग्य है कि हम अपनी भाषा को भूल गए हैं और पाश्चात्य के अंधानुकरण में ही लगे हैं।


आज नासा से लेकर सभी जगह भारतीय ज्ञान पर कार्य चल रहा है ऐसे में हमारा दायित्व अधिक बढ़ जाता है कि हम अपने ग्रंथों से सीखें। अपने व्याख्यान में डॉ विश्वेश जी ने वेदों से लेकर नासा तक समस्त बातों को सहज रूप से समझाया। डॉ. पंकज यादव ने भारतीय भाषाओं के परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने की बात की। समाज और भाषा पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हमें विश्व से यह सीखना चाहिए कि कैसे अपनी संस्कृति को बचाया जाता है। विशेषकर हिब्रू भाषा का उदाहरण देकर उन्होंने अपनी बात रखी। कार्यक्रम में डॉ. प्रवीण मैठाणी ने वेदों में मानवाधिकार पर विशेष बल देते हुए अपनी बात को रखा। उन्होंने कहा कि हमें शीघ्र ही वेदों की ओर लौटना होगा। प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. डी. एस. राणा ने विज्ञान को भारतीय परम्परा से जोडते हुए कणाद, जैमिनी आदि आचार्यों का उदाहरण दिया।
महाविद्यालय के प्राचार्य और कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. वी. एन. खाली ने कहा कि महाविद्यालय में इस प्रकार के आयोजन नितांत आवश्यक हैं। यह संगोष्ठी भारतीत ज्ञान परम्परा के उन पक्षों को भी हमारे सामने ला रही है जिनसे हम अनजान थे। प्रो. खाली ने कहा कि हमारे देश और विशेषकर हमारे प्रदेश उत्तराखंड में तो हम इस परम्परा को हमने परिवार, गाँव में सरलता से देखते हैं। यहाँ ज्ञान विज्ञान, के साथ नैतिक आत्मिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार का विकास और बोध हम करते हैं। पुरुषार्थ चतुष्टय हमारी वैश्विक धरोहर है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. मदन लाल शर्मा ने किया। कार्य्रकम की समस्त रूपरेखा कार्यक्रम संयोजक डॉ. मृगांक मलासी ने रखीं। इसके अतिरिक्त डॉ. एम. एस. कण्डारी, डॉ. रमेश भट्ट, डॉ. वी.आर. अंथवाल, डॉ. हरीश रतूड़ी, डॉ. चन्द्रमोहन जनस्वाण श्री नेतराम, श्री नरेन्द्र पंघाल, क्षिप्रा आदि ने शोधपत्रों का वाचन किया। संगोष्ठी का समापन दिनांक 21 फरवरी को किया जाएगा। कार्यक्रम में डॉ. अखिलेश कुकरेती डॉ. वी. पी. भट्ट, डॉ. कविता पाठक, श्रीमती पूनम, डॉ. शालिनी सैनी, श्रीमती स्वाति सुंदरियाल आदि उपस्थित रहे।