कैसे लगे हादसों पर अंकुश, मंथन और जागरूकता को कोई तैयार नहीं
How to control accidents, no one is ready for brainstorming and awareness
कैसे हैं हम? और कैसा हमारा शासन-प्रशासन
अल्मोड़ा हादसे से उबरे नहीं, दून में 6 लोग जान गंवा बैठे
4 नवम्बर को अल्मोड़ा में हुए बस हादसे में 37 लोगों की मौत हो गयी, कल रात देहरादून में कार सवार 6 लोगों की मौत हो गयी। कुछ हुआ ही नहीं, जिंदगी चल रही है। हम आगे बढ़ रहे हैं। आदिम युग में भी यही होता था और आज भी यही हो रहा है। मनुष्य संवेदनशून्य हो गया है। शासन-प्रशासन धन उगाही केंद्र की तर्ज पर काम कर रहे हैं और अययाशी में ही अपना सुख तलाश रहे हैं। जो मरता है, वो मरता रहे। जिसके परिजन मरे, वो रोते रहें। हम क्यों परवाह करें? क्या यह एक संवेदनशील और सशक्त होते प्रदेश की तस्वीर है?
हम हादसों से कुछ नहीं सीखते। मानव का क्रमिक विकास हुआ, लेकिन उत्तराखंडियों की सोच आदिकालीन ही रही है। सांचों और खांचों में बंटी हुई। यदि ऐसा नहीं होता तो 2013 की आपदा से हम सबक लेते। ऋषिगंगा से सबक लेते,जोशीमठ से सबक लेते। 31 जुलाई की केदारनाथ आपदा से सबक लेते। चारधाम महामार्ग से नये बने डेंजर जोन से सबक लेते। लेकिन हम बैल बुद्धि हैं। हम सीखना नहीं चाहते न ही सतर्क होना चाहते हैं। कबूतर की तर्ज पर हमने अपनी आंख मूंद ही है कि आंख बंद करो और खतरा टल जाएगा।
उत्तराखंड में हर साल एक हजार लोग हादसों में जान गंवा देते हैं। हर आठ घंटे में एक व्यक्ति काल का ग्रास बन जाता है। यानी हर साल प्रदेश में दो करगिल युद्ध जितनी कैजुअल्टी सड़क हादसों के कारण हो रही है। कारण और निदान के प्रयास शून्य हैं। चलो इंतजार करते हैं एक और हादसे का।