सरकार का दावा भ्रामक, 2012 से लागू हो रही है आरक्षण नीति”: उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ



देहरादून: उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ ने सरकार द्वारा आरक्षण नीति के संबंध में दिए गए बयानों को पूरी तरह भ्रामक और वास्तविकता से परे बताया है। संगठन का कहना है कि उपनल कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया में वर्ष 2012 से ही आरक्षण नीति का कड़ाई से पालन किया जा रहा है, और इस दावे के समर्थन में उनके पास दस्तावेजी प्रमाण भी उपलब्ध हैं।
राज्य अध्यक्ष रमेश चंद्र और राज्य महासचिव प्रमोद सिंह गुसाईं ने संयुक्त बयान जारी कर कहा:
> “सरकार द्वारा दायर की गई विशेष अनुमति याचिका (SLP) स्वयं सुप्रीम कोर्ट में असफल हो चुकी है। उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच पहले ही नियमितीकरण के पक्ष में निर्णय दे चुकी थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है। ऐसे में सरकार का आरक्षण का मुद्दा उठाकर प्रक्रिया को टालना कर्मचारियों के हितों की अनदेखी और समय की बर्बादी है।”

उन्होंने आगे कहा कि यदि सरकार को आरक्षण नीति के क्रियान्वयन को लेकर कोई संदेह है, तो उसे समाधान की दिशा में कदम उठाने चाहिए, न कि सार्वजनिक मंचों से गुमराह करने वाले बयान देने चाहिए।
> “भर्ती प्रक्रिया विभागीय मांग के अनुरूप हुई है और उसमें आरक्षण नीति का पालन किया गया है। यदि कहीं अपवाद हैं, तो सरकार को उनकी जांच कर उन्हें सुलझाना चाहिए, न कि पूरे मामले को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का शिकार बनाना चाहिए,” — संघ के पदाधिकारियों ने कहा।
संघ ने यह भी आशंका जताई कि आगामी 7 अगस्त 2025 को होने वाली अवमानना याचिका की सुनवाई में सरकार आरक्षण के मुद्दे का दुरुपयोग करते हुए एक बार फिर तारीख बढ़वाने का प्रयास कर सकती है।
> “सरकार की यह रणनीति केवल कर्मचारियों के समय का अपमान नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की भावना के भी विपरीत है।”
अंत में, संघ ने मुख्यमंत्री से अपील की कि वह अपने पूर्व घोषणाओं के अनुरूप चरणबद्ध नियमितीकरण की प्रक्रिया आरंभ कर हजारों कर्मचारियों और उनके परिवारों को न्याय दिलाएं।

