March 14, 2025

समाज में बढ़ते तलाक, कौन जिम्मेदार?

 

तलाक, ये शब्द आज का एक नया प्रसिद्ध शब्द बन गया है, जो अब उतना दर्दनाक या शर्मनाक नहीं रह गया है। आज की तरीख मे बढ़ते तलाक के आँकड़े तो इसी बात की ओर इशारा करते हैं। आखिर ये तलाक इतना आसान कैसे होता जा रहा है। ये अत्यंत विचारणीय है। इसकी जिम्मेदारी क्या सिर्फ दंपत्ति तक जी सीमित है या कुछ और महत्वपूर्ण पहलू भी इसमे अपना योगदान देते हैं?

 

*विचार या सोच* : हमारी हर हरकत पहले हमारी सोच मे ही जन्म लेती है, उसके बाद क्रियान्वित होती है। यदि हम सोच मे परिवर्तन ले आयें तो परिणाम बदल जायेंगे। तलाक का सबसे बड़ा कारण दंपत्ति की सोच का ना मिलना है। हम विवाह से पूर्व जन्मकुण्डली के द्वारा गुणों का मिलान करते हैं, लेकिन विचारों का नहीं। गुणों का मिलान आपके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन की गारंटी नहीं है। जब भी दंपत्ति के विचारों में भेद होगा, विवाद उत्पन्न होगा।

 

*मूल्यों में अन्तर*: विवाह और जीवनसाथी से जुड़े मूल्यों मे अन्तर भी तलाक का कारण बनता है। एक तरफ जहां लड़का अपने परिवार के लिए घर पर ही रहकर परिजनों की सहायता करने वाली पत्नी चाहता है वहीँ लड़की अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए विवाह को सुरक्षा और एक मंच की तरह देखती है, तो यहां पर दोनों के मूल्यों मे टकराव होना स्वाभाविक है। लड़के के लिए परिवार अधिक मूल्यवान है और लड़की के लिए करियर।

 

*आधुनिकता*: हम अपने को आधुनिक कहलाना पसंद करते हैं। हमारी आधुनिकता हमारे आज के चलन (फैशन) के साथ सामंजस्य से निर्धारित होता है। कई बार किसी सिलेब्रिटी के के तलाक के बाद की सूचनाएं, जैसे महँगा तलाक, छुट्टी के मनोरंजन की ख़बरें, हमें इस तरफ आकर्षित करती है और तलाक के दुष्परिणाम की तरफ से हमारा ध्यान हटाकर, इससे होने वाले फायदों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती है।

 

*स्वतंत्रता की चाहत*: आजादी, इसके मायने हम सब के लिए अलग-अलग हैं। कुछ लोग संयुक्त परिवार, या जीवनसाथी के साथ रहकर स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ, कुछ लोग सबसे अलग, बिना किसी रोक टोक के जीने को स्वतंत्रता मानते हैं। हर परिस्थिति के अच्छे-बुरे रूप होते हैं। आज युवा कॉलेज की पढ़ाई, नौकरी का जीवन अपने परिवार से अलग रहकर बिताते हैं तो अब उनको अपनी जिंदगी में किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नहीं होता। अब वो इसी बंधन रहित जीवन जीने के आदि हो चुके हैं जहाँ वे स्वतंत्र रहकर अपने निर्णय स्वयं लेते हैं। स्वतंत्रता की चाहत ही पहले युवाओ को अपने परिवार से अलग करती है फिर आगे चलकर अपने जीवनसाथी के हस्तक्षेप भी उन्हें अखरता है और वे अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए तलाक का माध्यम अपनाते हैं।

 

*मेरा-तुम्हारा की तुलना*: दंपत्ति जब भी अपने अपने परिवारों, रिश्तेदारों, रस्मों, रिवाजों, कार्यक्रमों, खान – पान आदि चीजों की तुलना करके अपने को श्रेष्ठ साबित करने की भावना से तुलना करते हैं तो यह एक हीन भावना को पैदा करता है और इससे ग्रसित होने पर दंपत्ति कुंठा का शिकार हो जाते हैं और इससे छुटकारा पाने के लिए प्रयास करने लगते हैं।

 

*प्रोफेशनल रिलेशनशिप*: जिन परिवारों मे प्रोफेशनल फायदों, रुतबे आदि को बढ़ाने की चाहत में वैवाहिक रिश्ते जोड़े जाते है, अधिकतर, वहाँ पर दंपत्ति मे पारस्परिक प्रेम और जुड़ाव ना होने के कारण ऐसे रिश्तों का दम जल्दी ही टूट जाता है और किसी प्रोफेशनल अनुबंध की तरह ही वैवाहिक सम्बंध भी भंग हो सकता है।

 

*पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव*: हमारी जीवन शैली में पश्चिमी सभ्यता का समावेश इस कदर हो गया है कि हम मानव मूल्यों और अपनी अटूट, अखंड संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। इस कारण पश्चिमी देशों की भाँति हमारे देश में किसी सम्बंध को तोड़ कर आगे बढ़ना एक बहुत सरल काम हो गया है।

 

*पारिवारिक शिक्षा और संस्कार*: बहुत से परिवार अपनी युवा पीढ़ी को विवाह की उनके जीवन मे महत्ता और वैवाहिक रिश्ते के सही मायने की शिक्षा ना दे पाना भी युवाओं मे इस रिश्ते की अज्ञानता का बड़ा कारण है। जिस तरह से हमारे जन्मजात रिश्तों को बनाये रखने के बारे में जागरुक करते रहते हैं उसी तरह से वैवाहिक रिश्तों को बनाए रखने के गुणों को सिखा कर, नयी युवा पीढ़ी को इस रिश्ते को सम्भालने मे मदद की जा सकती है।

 

*घर के बड़े लोगों की तैयारी*: घर के बड़े परिजन हमेशा से बच्चों को विवाह के लिए तैयार करते रहते हैं, परंतु वो खुद कई बार इस पर काम नहीं कर पाते हैं कि जब कोई नया व्यक्ती उनके परिवार से जुड़ता है तो उन्हें अपने घर-परिवार में कई बदलाव लाने होते हैं।

 

*सहनशीलता की कमी*: हमारी आज की युवा पीढ़ी रफ्तार पसंद है। सब कुछ जल्दी चाहिए।इंतजार और सब्र उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं। बड़े छोटे का कुछ भी कहा – सुना भी बर्दाश्त नहीं। हमें यह समझना चाहिए कि रिश्ते परिपूर्ण (परफेक्ट) नहीं होते हैं, उन्हें बेहतर बनाना होता है, कुछ बर्दाश्त करके, कुछ नजरअंदाज करके।

 

*आपसी बातचीत में कमी*: आज की अति व्यस्त जीवन शैली और मोबाइल फोन से बहुत अधिक दोस्ती रिश्तों में समय और बातचीत को खत्म करती जा रही है। साथ मे रहकर गुणवत्ता का समय बिताकर हमारे रिश्तों में घनिष्ठता एक दूसरे की पसंद नापसंद, और एक दूसरे को बेहतर जानने का मौका मिलता है। आपकी उपलब्धता से बढ़कर आपके जीवन साथी के लिए कोई और दूसरा मूल्यवान उपलब्धि नहीं है।

 

*सम्मान में कमी*: हो सकता है कि आपका जीवन साथी आपके साथ अत्यंत सरल और सुगम हो, लेकिन आपको ध्यान रखना है कि उसका अपना प्रोफेशनल सम्मान, पारिवारिक सम्मान, सामाजिक सम्मान और आर्थिक सम्मान होता है। आपका कर्तव्य है कि आप अपने जीवन साथी का सम्मान बनाए रखने और इसे बढ़ाने में अपना पूरा योगदान दे। आपके द्वारा किया गया मज़ाक उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है जो कि भविष्य में नुकसानदायक साबित हो सकता है।

 

*आपसी परामर्श*: कोई दंपत्ति यदि किसी समस्या या परिस्थिति को सुलझाने के लिए, या किसी कार्य को करने के लिए खुद की असमर्थता होने पर अपने जीवन साथी से बेझिझक परामर्श ले तो, यह एक बेहतरीन स्तिथि होगी। दंपत्ति को चाहिए कि वे एक दूसरे की योग्यता और ज्ञान का सम्मान करते हुए किसी मुद्दे को सुलझाने के लिए एक दूसरे से परामर्श करें और एक दूसरे से मिली सलाह को गंभीरता से लेकर मंथन करे।ये परामर्श एक दूसरे को कम या नीचा दिखाने की कोशिश नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से आपसी सामंजस्य और मजबूत होगा।

 

*विवाह से पूर्व काउंसिलिंग*: वैवाहिक रिश्तों को बेहतर और सुदृढ़ बनाने के लिए युवाओ को विवाह से पहले काउंसिलिंग के लिए किसी पेशेवर काउंसलर से मदद जरूर लेनी चाहिये। जिस तरह से शरीर सेहत के लिए फिजीशियन से सलाह लेना, धार्मिक कार्यों के लिए धर्मशास्त्री से सलाह लेना आवश्यक है, उसी प्रकार वैवाहिक रिश्तों की सेहत बनाए रखने के लिए शर्मिन्दगी जैसी भावनाओं को छोड़कर काउंसिलिंग लेकर आप अपने वैवाहिक रिश्तों को जानदार रख सकते हैं। दंपत्ति के परिजनों और मित्रों को भी विवाह के पूर्व काउंसिलिंग के लिए प्रेरित करना चाहिये।

 

डॉ पवन शर्मा,

The Psychedelic,

FORGIVENESS FOUNDATION SOCIETY

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