सैकोट मालधार में आज भी पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर रोपाई
जहाँ गढ़वाल क्षेत्र के लोग आज अपने पारम्परिक रीति रिवाज ओर अपने गाँवो अपने खेत खलियानों को छोड़कर गढ़वाल से पलायन कर रहे है। वहीं दूसरी ओर गढ़वाल में कई जगह आज भी अपने पौराणिक रीति रिवाजों ओर पारम्परिक धरोहरों को बचाने और सँजोये रखे है। जी हां आज भी चमोली जिले के सैकोट मालधार का एक ऐसा गाँव जहाँ ग्रामीण आज भी अपने पारम्परिक तरीके से वाद्य यंत्रों की थाप पर रोपाई यानि रोपणी का शुभारंभ करते है। मान्यताओं के अनुसार 9 गते अषाढ़ के दिन आज भी गढ़वाल क्षेत्र में रोपाई नहीं की जाती है। इसके पीछे भी एक लोक कथा प्रचलित है।
अषाढ़ के महीने की 9 गते की रोपणी को लेकर आज भी माना जाता है कि इस दिन रोपणी के सेरे यानि रोपाई के खेत में जीतू के प्राण नौ बैणी आछरियों (परियाँ) ने हर लिए थे। जीतू और उसके बैलों की जोडी रोपाई के खेत में हमेशा के लिए धरती में समा जाता है। पहाड़ के सैकड़ों गाँवों में हर साल जीतू बगडवाल की याद में बगडवाल नृत्य का आयोजन किया जाता है। बगडवाल नृत्य पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। जिसमें सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है बगडवाल की रोपणी का दिन। इस दौरान रोपणी को देखने अभूतपूर्व जनसैलाब उमड़ता है। जीतू बगड्वाल के जीवन का 9 गते अषाढ़ की रोपाई का वह दिन अपने आप में विरह-वेदना की एक मार्मिक समृत्ति समाये हुए है।
