उत्तराखंड के पर्वतीय जनपद की समस्याओं पर देश के सर्वोच्च सदन में आज तक नहीं उठी काई आवाज?


Why has no voice been raised till date in the Supreme House of the country on the problems of the hilly district of Uttarakhand?
राज्य स्थापना के 24 साल बाद भी पहाड़ी जनपदों की हालतों में ना के बराबर सुधार आया है। हॉलाकि सड़क,बिजली,पानी,संचार सुविधाओं में कुछ सुधार देखा गया हैं लेकिन शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार के क्षेत्र में हालात आज भी चिन्ताजनक बने हुऐ है। बीते 24 सालों से भाजपा व कांग्रेस की सरकारें बारी बारी से सत्ता में रही लेकिन सभी दलों को जनता के हित से ज्यादा ध्यान अपनी कुर्सी बचाने में लगा रहा। राजनीतिक अस्थिरता राज्य के विकास में लगातार अवरोधक बनी रही। वहीं बात अगर लोकसभा सांसदों की रहीं हो तो जनता के हित में दोनों दलों के प्रतिनिधियों ने आज तक राज्य हित खास कर पहाड़ी जनपदों के लिए कोई ठोस आवाज नहीं उठाई। अभी तक के सासंदों की अगर बात की जाय तो राज्य की 80 प्रतिशत जनता अपने सांसदों का नाम तक नहीं जानती। सांसदों का काम क्या होता है,सांसद किस बला का नाम है प्रदेश की अधिकतर जनता को पता नहीं है। पांच साल में एक बार प्रत्येक जनपद के मुख्य शहरों में चुनावी रैली कर भोली भाली जनता से विकास के सुनहरे वादे और दावे किये जाते है। और फिर पांच साल तक गायब हो जाते है। सांसदों का फायदा तो आज तक सिर्फ उनके आस पास घूमने वाले छुटभैया नेता व रिस्ते नातेदार ही ले पाये है। सांसदों की उदासीनता के चलते उत्तराखंड के अनेक क्षेत्रों में सड़कें व अन्य जनसुविधायें न पंहुचने से इस बार भी चुनाव का बहिष्कार जारी है। सत्ताधारी पार्टी ने तो अनेक ऐसे प्रत्यासी चुनाव मैदान में उतारे है जिन्हें इस बार भी जबरदस्ती जनता पर थोपा गया है। ये ऐसे सांसद रहे है जिनकी आवाज आज तक संसद भवन में गूंजी है और न ही यह अपनी निधि से जनहित में कोई ठोस विकास कार्य कर पाये है।
इस बार जनता का सीधा सवाल उभर कर आया है कि जिन जिम्मेदार लोगों को हम देश के सर्वोच्च सदन में अपनी आवाज बनाकर भेजते रहे है, उन्होंने आज तक प्रदेश हित में अपनी आवाज को प्रखर रूप में सदन के पटल पर क्यों नहीं रखा? क्या प्रदेश के पहाड़ी जनपदों की सभी समस्याओं का समाधान हो चुका है? राज्य निमार्ण के बाद अधिक पलायन क्यों हुआ है? पर्वतीय जनपदों में कृषि क्षेत्र में किसानों की बढ़ती चुनौतियों खासकर जंगली जानवरों की समस्या के लिए प्रदेश के सांसदों के द्वारा ठोस पैरवी क्यों नहीं की गई है? प्रदेश के युवा बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार के ठोस संसाधनों के लिए पहल कब होगी? पहाड़ी जनपदों में मल्टी सुविधाओं से युक्त अस्पताल व हाईटेक स्कूल कब खुलेंगे? सिर्फ रेल प्रोजेक्ट व ऑलवेदर रोड़ से काम नहीं चलने वाला है। बड़ी बात यह है कि इन लोकसभा चुनावों में भी किसी भी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों के लोगों की ज्वलंत समस्याओं को सामिल नहीं किया है। जो एक चिन्तनीय विषय है।