जलवायु परिवर्तन से मध्य हिमालय को सबसे ज्यादा खतरा





जलवायु परिवर्तन सम्पूर्ण विश्व के लिए सबसे बडी समस्या के साथ साथ एक बडा खतरा बनता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत समेत दुनियां के अनेक देशों में खतरनाक पर्यावरणीय बदलाव देखेने को मिल रहे है। वही देश के अनेक राज्यों में भी इसका असर साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में उत्तराखंड सबसे उपर है। एक अध्ययन के अनुसार यहां प्राकृतिक आपदा जैसे बादल फटना,बाड़,भूस्खलन, में 1970 के बाद लगातार वृद्धि देखने को मिला है। उत्तराखंड के चमोली,उत्तरकाशी,हरिद्वार,नैनीताल,पिथौरागढ़ प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा संवेदनशील है। 2013 की प्रलयकारी बाड़़ ने इसकी संवेदनशीलता का नमूना भी पेस किया है।
भू बैज्ञानिक भी उत्तराखंड की इस संवेदनशीलता से चिन्तित नजर आते है। भरसार यूनिर्वसिटी के ईन्वायरमैंट साईन्स के प्रोफसर डॉ.एस.पी. सती का कहना है कि उत्तराखंड मध्य हिमालय में स्थित है। इसलिए उत्तराखंड में अधिक प्राकृतिक आपदाओं की संभावनायें है। अतिवृष्टि जनित आपदायें व जंगलों में आग की प्रवृति अन्य प्रदेशों से अधिक है। यह पूरे हिमालय मे सबसे अधिक घनी नदियों का क्षेत्र है। कालीनदी से यमुना नदी तक लगभग 16 नदियां इसलिए इन नदी घाटियों में अधिक बाढ़ आ रही है। ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे है अतिवृष्टि के कारण डैम स्ट्रेचर,सड़कें टूट रहे है,बस्तियां नेस्तनाबूत हो रहीं है। मध्य हिमालय काफी कच्चा है,उत्तराखंड की विकास परियोजनाओं के लाभ से पहले जनता को हानि हो रही है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए देशभर के कई भू बैज्ञानिक शोध कार्यो में जुटे हुऐ है। लेकिन बैज्ञानिकों को मानना है कि अभी भी लगभग तीन दसकों तक उर्जा के लिए अन्य स्रोतों पर निर्भर रहना होगा। वाडिया भू बैज्ञानिक संस्थान के बैज्ञानिक डॉ कला चंद सेन का कहना है कि थर्मल इर्नजी को इलैक्ट्रीसिटी में बदलने का प्रयास किया जा रहा है,ताकि ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को कम किया जा सके।
डॉ. पटनायक पर्यावरण की दृष्टि से हिमालय को अति संवेदनशील मानते है। उनका कहना है कि, पर्यावरण विकास एक दूसरे के पूरक है। पर्यावरण असंतुलन से जैव विविधता,वन्यजीव,परस्थितिकी तंत्र आदि सभी प्रभावित होते है। किसी भी क्षेत्र की प्रसाशनिक व्यवस्था उसकी केयरिंग कैपिसीटी के आधार पर होनी चाएिये।
डायरेक्टर कलाईमेट टेंड्स की डॉ.आरती खोसले पर्यावरण में हो रहे असंतुलन के लिए सरकारों की बिना अध्ययन की नीतियां को मानते है। उनका कहना है विकास कार्य केयरिंग कैप्सिटी के आधार पर होना चाहिए। जोशीमठ आपदा व केदारनाथ आपदायें भविष्य में न आयें इसके लिए अनावश्यक तरीके से सिर्फ पर्यटन पर निर्भर रहने के बजाय कृषि व अन्य क्षेत्रों में रोजगार तलासने की आवश्यकता है।
पर्यावरण संतुलन के क्षेत्र में कई सस्थायें काम कर रही है जिसमें पर्यावरण परिवर्तन पर काम कर रही संस्थाओं में क्लाईमेट टेंड्स एक अग्रिम संस्था है जिसका उद्देश्य पर्यावरण जलवायु परिवर्तन और टिकाउ विकास के मुद्दों निर्माण और जनसरोकारों की चर्चा का मुख्यधारा में लाना है।
जलवायु परिवर्तन को लेकर मौसम बैज्ञानिकों का मानना है कि, उत्तराखंड में वर्ष 2013 को पहली बार पश्चिमी विक्षोप के सक्रिय होने से अतिवृष्टि के कारण भयानक बाड़ आई है। वर्तमान में वर्षा में ज्यादा परिवर्तन तो नहीं देखने को मिला लेकिन कभी कभी बरसात के समय बारिस के दिनों की संख्या में बडोत्तरी देखने को मिली है।
एक अध्ययन के अनुसार 100 सालों में पृथ्वी के तापमान में 8 डिग्री से अधिक का इजाफा हुआ है। जिसके कारण ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे है। वर्तमान समय में ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव देखने को मिल रहे है जिसके कारण तापमान में वृद्धि,कही तेज बारिश,तो कही सूखा,भूस्खलन,वनाग्निी में वृद्धि आदि देखेने को मिल रही है।सफल विकास के लिए वर्तमान नियोजन प्रक्रिया के पास जलवायु और पर्यावरण जोखिमों को ध्यान में रखने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। जलवायु परिवर्तन के लिए जन-जागरूकता के साथ-साथ बैज्ञानिक अध्ययनों पर गंभीरता केे साथ विचार कर विकास धरातल पर उतारना होगा। जिससे पर्यावरण संतुलन को बनाया जा सके।
भानु प्रकाश नेगी,हिमवंत प्रदेश न्यूज देहरादून

