राजराजेश्वरी की रूप छड़ी और कलश यात्रा से हुई भागवत कथा प्रारम्भ


Bhagwat Katha started with the form of Rajrajeshwari’s stick and Kalash Yatra.
रुद्रप्रयाग: कंडारा रुद्रप्रयाग में स्व. मथुरी देवी एवं स्व. सत्यनंद की पुण्य स्मृति में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का आयोजन किया गया है। प्रथम दिन माँ राजराजेश्वरी के मन्दिर से रूप चड़ी एवं श्रीमद भागवत महापुराण सिर पर लिए गए भैरव मन्दिर, शिव महादेव मंदिर होते हुए कथा स्थल पर राधा कृष्ण का लड्डू गोपाल का स्नान किया गया।
वही सुप्रसिद्ध कथा वाचक शिव प्रसाद मंमगाई ने कथा प्रवचन करते हुए कहा की भागवत ग्रंन्थ लोक- परलोक को सुधारने वाला काल जयी दर्पण है। दर्पण का सम्बन्ध वर्तमान से होता है हर अवस्था के वर्तमान को सुधारने वाला श्रीमद भागवत की जन्म भूमि उत्तराखंड का बद्री धाम है। व्यास जी ने वेदो का विभाजन एवं पुराणों की रचना करने के बाद श्रीमद्भागवत को लिखा जिसमे प्रथम भक्ति ज्ञान बैराग्य का प्रसंग अपने अज्ञान अहंकार को दूर करने वाले एक ज्ञान रूपी प्रकाश है।


भक्ति का मतलब मूल भगवान् से सम्बन्ध जोड़ना है, ज्ञान का मतलब कर्तव्य बोध के जन कल्याण करना, वैराग्य का मतलब है शरीर में कष्ठ सहन करते हुए जन कल्याण का कार्य करना है।
उन्होंने कहा कि माॅ वाप की सेवा करने वाले भगवान के सबसे प्रिय होते है जो अपने माॅ बाप,सास ससुर,व बुजूर्गो की सेवा करता है उसके जीवन में किसी भी प्रकार की बाधाये नहीं आती है। अपने धर्म की रक्षा तन मन धन से करनी चाहिए।
इस अवसर पर मुख्य रूप से बद्री केदार समिति के पूर्व अध्यक्ष हरीश डिमरी,महीधर गैरोला, रजनी गैरोला, अनुज गैरोला, अंकित गैरोला, कुशलानन्द गैरोला,प्रदीप गैरोला, वंदना,देवश्वि नंद सरमने, चंद्रप्रकाश सरमने, हर्षमनी गैरोला, राकेश विनोद,प्रमोद, सुबोध,रमेश चन्द्र, मनोज, विशंभर दत्त, विजय दत्त, राजेन्द्र पंत, भानु प्रकाश नेगी आदि भक्त गण भारी संख्या में उपस्थित थे।